हरिण हितार्थ शहीद मंगला राम बाना: एक अमर बलिदान

मंगलाराम बाना का जीवन और बलिदान: हरिण हितार्थ शहीद मंगलाराम बाना की अनसुनी कहानी (Mangla Ram Bana)

बिश्नोई समाज में धर्म पर मरमिटने वालों की कमी नहीं है। जब गुरु महाराज ने पाहल देकर बिश्नोई दीक्षित किया तब से ही वीरों ने अपने लिए शुभ संकल्पों की कमर कस ली एवं उन संकल्पों पर आंच आई तो उन्होंने अपने आपको संकल्पों की रक्षा में उत्सर्ग कर दिया। संकल्प चाहे हरे वृक्ष (खेजड़ी) की रक्षा हो अथवा वन्य जीव (हरिणों) की रक्षा हो। वन्य जीव रक्षार्थ अपने जीवन को उत्सर्ग करने वालों को मौत जरा भी भयभीत नहीं कर पाई। सामने शिकारी बंदूक तानें खड़ा है, उसने एक धमाके में वन्य जीव को मारा है, दूसरे धमाके में रक्षार्थ आने वाले को भी मार सकता है। शिकारी के सामने वह निहत्था है आत्म रक्षा में एक लाठी भी नहीं जुगाड़ सका है- सामने मौत को देखते हुए भी वह मौत से भिड़ गया।

धर्म के नाम पर इसी तरह बलिदान होने वालों के साहस पर ही बिश्नोई समाज का गौरव टिका हुआ है। ये बलिदान ही है जो हमारे समाज के जज्बे को अन्य समाजों से पृथक करते हैं- कुछ विशेष बनाते हैं।

हरिण हितार्थ अपने आपको बलिदान करने वालों की सूची में एक नाम है- मंगला राम बाना, गांव-जालोड़ा, तहसील-फलौदी (अब लोहावट), जिला जोधपुर (अब फलोदी) पिता का नाम-पन्नाराम, माता का नाम-मिरगां, पुत्री-काछबाराम गोदारा भाणकी (धोरीमन्ना) पीहर ।

शहीद की माता मिरगां को पहला दुःख तब पड़ा जब उनके पति का देहांत वैवाहित जीवन के प्रारम्भिक काल में हो गया। तब उनके दो ही संतानें थी- बड़ा मंगलाराम व छोटा सोढ़ाराम। इससे पहले कि घटनाक्रम को आगे बढ़ाऊं मैं शहीद के दादा समेलाराम के परिवार का परिचय दे रहा हूं।

गांव जालोड़ा का बड़ा परिचय यह हैं कि राजस्थान के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री श्री टीकाराम पालीवाल (जिनका कार्यकाल मार्च 1952 से अक्टूबर 1952 तक रहा) के पुरखों का यह गांव रहा है इनके पूर्वज बाद मैं अन्यत्र आबाद हो गए।

सम्मेव्यणी परिवार का परिचय ऊपर दर्शाया जा चुका है, पन्नाराम का जब अल्पकाल में ही देहावसान हो गया तो शहीद की माता को पन्नाराम से छोटे भाई लूंभाराम से चुनरी ओढा दी गई जिनसे एक और सुपुत्री जमना हुई।

शहीद होने की घटना पुरानी है- लगभग 80 वर्ष पुरानी। मैं बचपन से ही उक्त परिवार से परिचित था तथा उक्त बलिदान के बारे में सुनता आ रहा था। मेरे ननिहाल में सम्मेव्यणी परिवार की रिश्तेदारी थी वे मेरे ननिहाल आते-जाते रहते थे। मैं वहां उनसे मिलता-जुलता रहता था, उक्त हरिण हितार्थ बलिदान की चर्चा होती रहती थी। हरिण हितार्थ की चर्चा मेरे बड़े भाई फूसाराम भी करते रहते थे। जिनकी उम्र अभी 93 वर्ष की है, घटना के समय के तरुणावस्था में थे एवं मंगला राम के लगभग हम उम्र थे।

समाज द्वारा प्रकाशित हरिण हितार्थ बलिदान होने वाले शहीदों की सूची को जब मैंने पढ़ा तो उसमें मंगला राम का कहीं नाम नहीं था। मैंने परिवारजनों एवं रिश्तेदारों से इस बारे में पूछा तो मालूम पड़ा कि उस समय पत्र पत्रिकाएं समाज की तरफ से निकलती ही नहीं थी, अतः नाम आगे प्रचारित हो नहीं पाता था।

परिवार वालों ने तो बहीबाटों की बही में भी लिखवाना गैर जरूरी समझा। बलिदान दे दिया, बस कृतार्थ हो गये। समाज के गौरवमय इतिहास का भवन इन्हीं बलिदानों की नींव पर रचा गया है। भले ही वे नींव के पत्थर आज अदृष्य हैं, उनके नामों का प्रचार-प्रसार नहीं हो पाया है परन्तु इस गौरवमय भवन में उनका महत्व कम नहीं है।

गौरवमय इतिहास के भवन की नीवों में पता नहीं और कितने मंगला राम बाना दबे हुए हैं। उन नामों को उकेरने एवं प्रकाशित करने की आवश्यकता है। उन नामों को प्रकट करने की आवश्यकता है। उन बलिदानों को उजागर करने की आवश्यकता है ताकि आज के युवाओं के लिए प्रेरणा के स्रोत बन सकें। जिस समय मैंने उक्त घटना के बारे में (बलिदान के बारे में) वास्तविक जानकारी लेनी चाही (तीन चार वर्ष पहले) तब पुरुषों में तीन ही जने जीवित बचे थे, जो घटना के प्रत्यक्षदर्शी थे। 1. सम्मेलाणी परिवार के श्री जगमाल राम बाना पुत्र श्री हरजी राम बाना, जो शहीद मंगला राम के सगे ताऊ के बेटे भाई थे। शेष दो मंगला राम के चचेरे भाई थे। 2. जोधाराम पुत्र श्री लूंभाराम बाना एवं 3. श्री हरनाथ राम पुत्र श्री गोरखा राम बाना। इनमें श्री जोधा राम एवं हरनाथ राम से मेरा संपर्क नहीं हो पाया। श्री जगमाल राम की दो पुत्रियां मेरे पड़ोस में दी हुई थी, जब वे इधर अपनी पुत्रियों के यहां आए हुए थे तो मैंने उनसे संपर्क किया। मैं जो मंगला राम के बलिदान के बारे में लिख रहा हूँ, वह श्री जगमाल राम की बताई हुई जानकारी को ही लिख रहा हूं।

अभी जब मैं उक्त बलिदान के बारे में लेख लिख रहा हूँ उक्त प्रत्यक्षदर्शी तीन जनों का भी स्वर्गवास हो चुका है, परन्तु मेरा नया संपर्क शहीद की माता की औरस पुत्री जमना से हुआ। पन्ना राम के देहावसान पश्चात् शहीद की माता मिरगां का पुनर्विवाह पन्नाराम के छोटे भाई लूंभा राम से हुआ, उनसे एक पुत्री हुई थी जमना। जमना की आयु अभी लगभग 85 वर्ष है एवं स्वस्थ है। खिलेरी हाणियां शंकर लाल जी से उनका विवाह हुआ।

शंकरलालजी के स्वर्गवास को तेरह चौदह वर्ष हो चुके हैं, जमना के चार पुत्र हैं, जो सम्पन्न हैं। मेरे फोन पर संपर्क जमना के दूसरे बड़े पुत्र नारायण से हुआ। नारायण सेवानिवृत्त फौजी है, जब मैंने उक्त बलिदान के बारे में चर्चा की तो उसने उक्त घटना को प्रकाशित करवाने के लिए मुझसे आग्रह किया। अपनी माता से फोन पर मुझसे बात करवाई। घटनाक्रम की श्री जगमाल रामजी बाना द्वारा दी गई जानकारी की पुष्टि की एवं सही बताया।

अब मैं स्व. श्री जगमाल राम जी द्वारा घटनाक्रम के बारे में बता रहा हूं, घटना गर्मियों के दिनों की एवं विक्रम संवत् 2003 की होना बताया, जिस समय घटना घटी उस समय मंगला राम बाना के साथ दो अन्य जने थे- 1. श्री बरसींगाराम पुत्र श्री रामकिशन गोदारा (इनके पडोसी) एवं 2. धोंकलाराम जी मांझू। दोनों मंगला राम बाना से तीन वर्ष छोटे पड़ते थे। मंगला राम बाना इन दोनों से बड़ा भी था, हिम्मतवाला था। उस समय उसकी आयु लगभग पंद्रह वर्ष थी। शिकार होने की भनक इन्हें बन्दूक की आवाज सुनकर हुई। ये तीनों अपने पशुधन को देखरेख एवं तालाब की ओर ले जाकर पानी पिलाने की जुगत कर रहे थे। गोली की आवाज सुनकर अपने पशुधन को छोड़कर शिकारी की खोज में निकल पड़े। जालोड़ गांव का रागासर तालाब। तालाब की पाल पर बनी एक साल (कोठरी) इसी साल में शिकारी भील हिरन की खाल उतारने की तैयारी कर रहा था। आरोपी भील जालोड़ा गांव का ही था, नाम था धूड़िया। जालोड़ा गांव से पूर्व दिशा में उसकी ढाणी थी।

भील धूड़िये ने जब इन तोनों को लाठी लेकर दौड़ते हुए अपनी ओर आते देखा तो हिरन को वहीं छोड़ अपनी बदूंक को लेकर भाग गया। तीनों ने कुछ दूर तक उसका पीछा किया परन्तु बाद में रुक कर निर्णय लिया कि भील पुनः हरिण को लेने के लिए यहां अवश्य । आएगा, तब उसको पकड़ लेंगे।

इसी उद्देश्य से रागासर तालाब के पाल के पीछे एक सघन जाल का वृख था उसमें जाकर छुपकर बैठ गए। शिकारी भील के पुनः वहां आने का इंतजार करने लगे। दोपहर के चार बजे शिकारी भील लुकता-छिपता आया और मृत हरिण को लेकर जाने लगा। भील थोड़ी दूर निकल गया तो इन तीनों को पता चला। तीनों उसे पकड़ने के लिए दौड़े। बरसींगा राम एवं खेता राम, मंगला राम बाना से आयु में भी छोटे थे एवं कमजोर भी थे, उनकी उम्र दस से बारह बर्ष थी लगभग। अतः ये दोनों पीछे रह गए। मंगलाराम उनसे बड़ा था। नई तरुणाई, नया जोश एवं ताकतवर था वह उनसे आगे निकल गया। वह दौड़कर भील तक पहुंच गया एवं उस पर अपनी हाकणी (गायों को हेरने की लकड़ी) से भील पर हमला कर दिया।

स्व. श्री जगमाल राम ने बताया कि मंगला राम बाना ने यहीं पर गलती की, उसने भील की पहले बंदूक नहीं छीनी एवं अपने पास ली हुई लकड़ी से उसे मारने लगा। बंदूक छीन ली होती तो भील गोली नहीं चला पाता। भील ने मंगला राम बाना के दोनों साथियों को भी पीछे आते देख लिया था। बंदूक भरी हुई थी, भील ने गोली चला दी। गोली मंगलाराम के सीने को चीरती हुई पार निकल गई। मंगलाराम का खून गर्म था वह भील से गुत्थम-गुत्था हो गया। उसने भील को पटक दिया। एक हाथ से भील की कमर को कसकर पकड़ लिया, दूसरे हाथ से भील का गला दबा दिया था। मंगला राम बाना के दोनों साथी भी आ गये थे। मंगला राम बाना के प्राण पखेरू उड़ गये थे परन्तु उनके एक हाथ से जो भील की कमर पकड़ी हुई थी, दूसरे हाथ से भील का कंठ कस कर पकड़ा हुआ था, भील का गला रुद्ध हो गया था, वह मरने के लिए निश्चेष्ट हो गया था, उसके मुंह से झाग आने लग गए थे, आँखें फट गई थी। वह असहाय हो गया था।

मंगला राम बाना के दोनों साथियों को मंगला राम बाना के प्राण पखेरू उड़ने का पता तो नहीं चला, उनको मृत प्राय तड़पते हुए भील को देखा नहीं गया, उन्हें उस पर दया आ गई, वे मंगला राम बाना द्वारा कसकर पकड़े हुए भील के गले को छुड़ाने लगे। परन्तु गला इतने जोर से कसकर पकड़ा था कि मंगला राम के हाथ की अंगुलियां अकड़ गई थी। बड़ी मुश्किल से मंगला राम के हाथों से भील का गला छुड़ा पाए। श्री जममाल रामजी ने मुझे बताया कि अगर भील का गला मंगला राम के हाथ से नहीं छुड़ाते तो वहाँ पर भील की मौत भी निश्चित थी। भील को पकड़ लिया गया।

तदनंतर आने-जाने वाले लोगों ने घटना को देख लिया था। पास ही खानों में काम कर रहे लोग आ गए थे। गोदारों एवं बानों को इस घटना के बाबत सूचना मिल गई थी। भील ने बहाना बनाया कि वह प्यासा मर रहा है मुझे पानी के लिए जाने दिया जाए। लोगों ने मान लिया। यह पानी पोने के बहाने वहां से भाग गया।

स्व. श्री जागमाल राम बाना ने मुझे बताया था कि उक्त घटना के बीस दिन पहले जालोड़ गांव के ही एक व्यक्ति भूराराम धतरवाल ने भविष्यवाणी की थी (स्वयं को एक स्वप्न आने का हवाला देकर) कहा कि हरिण के शिकार में शिकारी से संघर्ष होगा, शिकारी की बंदूक की गोली से एक युवक की जान चली जाएगी। भूराराम ने आत्मविश्वास के साथ कहा था कि ऐसी घटना घटेगी जरूर। लोगों ने तब उसकी बातों पर विश्वास नहीं किया था अथवा माना ही नहीं परन्तु जब घटना घट गई तो सबको दुःख हुआ एवं पश्चाताप किया कि उसकी बात को अगर गंभीरता से लेते तो शायद यह दुर्घटना टल सकती थी, परन्तु दुर्घटना तो घट चुकी थी, अब तोकेवल पश्चाताप ही करना शेष था।

आरोपी भील बंदूक लेकर भाग गया था, इकट्ठे हुए लोगों की यह इच्छा थी या मजबूरी? गांव के लोगों को ठाकुरों का भय भी था कि किसी ने घटना को देखकर क्रोध में आकर लाठी मार दी तो भील मर भी सकता है। बिश्नोई बाना, गोदारा, धतरवाल इकट्ठे हो गए। सबने मिलकर तय किया कि पहले ठाकुरों के पास जाया जाए, उनसे इस दुर्घटना बाबत गुहार की जाए। उनसे भील के विरुद्ध कार्य करने की अपील की जाए। लोग मिलकर ठाकुरों के पास गये भी।

स्व. श्री जगमाल राम जी बाना ने बताया कि जालोड़ गांव का बराबर का हिस्सा होता था। पालीवाल उनके कामदार होते थे। ठाकुर जागीरदार थे- 1. रावलोत भाटी चैनसिंहजी, 2. डोडिया देवीसिंह एवं 3. पौलवा ठिकाने के ठाकुर माधोसिंहजी चांपायत (फलोदी पंचायत समिति के पूर्व प्रधान श्री गोपाल सिंह जी के बड़े भाई)।

तीनों ठाकुरों के वहां बिश्नोई पंच मिलकर गये। उनसे सहायता की अपील की, परन्तु ठाकुरों ने उनकी एक भी नहीं सुनी। डोडिया ठाकुर देवी सिंह तो पूरी तरह से भील के साथ था, भील उसी के लिए यह काम करता था। बिश्नोई पंचों ने मिलकर तय किया कि फलोदी जाकर थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई जाए। मृतक देह को बैलगाड़ी पर रखकर साथ ले गए। श्री जगमाल राम जी बाना ने बताया कि फलोदी (मृतक देह को) ले जाने वालों में मौजीण मेरे पिताजी (श्री हरजीरामजी बाना) थे। मुकदमा थाने में दर्ज हुआ। मृत देह का पोस्ट मार्टम चीरघर फलोदी में हुआ। देह को यहीं (चीरघर के पास) मिट्टी के हवाले कर दिया। शिकारी के विरुद्ध मुकदमा चला। स्व. श्रीजगमाल राम बाना ने मुझे बताया था कि धूड़िया को छः माह की सजा हुई।

शहीद की बहिन जमना ने बताया कि जब सजा पूरी काट कर धूड़िया अपने गांव घर आ रहा था तो रात को पोकरण में बैठा, जब रेलगाड़ी बनासर (अब शैतान सिंह नगर) रेलवे स्टेशन पर कुछ धीमे हुई तो वह वहां उतरने के लिए रेल से कूद गया। उक्त स्टेशन से उनकी ढाणी एवं गांव नजदीक पड़ता था। रेल से कूदते समय उसकी टांग टूट गई। जिसके अवसाद में भुगतता हुआ अपने घर पर ही मरा।

शहीद मंगला राम मंगला राम की माता का जीवन संकटमय ही रहा था। उनके विवाह के अल्पकाल बाद ही उसके पति पन्नाराम का देहान्त हो गया था। बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी उस पर आ पड़ी थी जिसको उसने निभाते हुए अपने बच्चों का पालन-पोषण किया। जब बड़ा बेटा मंगला राम जिम्मेदारी संभालने योग्य हुआ तो वह हिरण हितार्थ शहीद हो गया। यह उस पर दूसरी बड़ी आपदा थी। आपदाओं ने शहीद की माता का पीछा तब भी नहीं छोड़ा। शहीद की माता मिरगां पर तीसरी आपदा का पहाड़ तब टूट पड़ा जब मंगला राम मंगला राम के शहीद होने के दो वर्ष बाद ही उसका छोटा बेटा सोढाराम चल बसा। तब उसके जीवन की आशा केवल उनकी पुत्री जमना पर ही थी। जमना के बड़ी होने पर उसका विवाह हाणियां के शंकरलाल खिलेरी के साथ किया। जमना के चार पुत्र हैं, सभी पढ़े लिखे एवं सम्पन्न हैं। सरकारी नौकरियों में भी हैं। मैं पूर्व में जिनके बारे में चर्चा कर चुका हूँ। जमुना के पुत्र नारायण राम (भूतपूर्व फौजी) ने मुझसे शहीद मंगला राम के बारे लिखने का आग्रह किया था। जिसे मैं स्व. श्री जगमालराम जी बाना एवं शहीद की बहिन जमना से प्राप्त जानकारी को आपके सामने लेखरूप में प्रस्तुत कर रहा हूं।

उक्त शहादत तत्काल में बहुत चर्चित हुई थी। तत्काल में गांवों के शिरोमणि बिश्नोई नेताओं के घर इनकी रिश्तेदारियां थी। शोक संतप्त परिवार सांत्वना सभा में आसपास के गावों के लोग शामिल हुए थे। परन्तु कालान्तर में भूल गये। हरिण हितार्थ शहीदों की सूची में मंगला राम का नाम जुड़वाने एवं शहीद को न्यायोचित सम्मान दिलाने की जहमत किसी ने नहीं उठाई। लेख के माध्यम से मैं उक्त जानकारी भेज रहा हूँ।

जाम्भोलाव धाम क्षेत्र के प्रबुद्धजनों से मेरे इस लेख के माध्यम से निवेदन है कि उक्त शहीद के बारे में जो अनभिज्ञ है, विश्वसनीय जानकारी पूछताछ कर प्राप्त कर लें। लगभग 80 वर्ष पूर्व की घटना है, बड़े बुजुर्गों से बलिदान की सच्चाई के बारे में जानकारी प्राप्त करने एवं हरिण हितार्थ शहीदों की सूची में उक्त नाम जोड़ने के लिए आवाज उठाएं। अमर शहीद को सच्ची श्रद्धांजलि तभी मिलेगी जब उसको उसकी शहादत का उचित एवं न्यायपूर्ण सम्मान मिल सकेगा।

  • सादर आभार:
    • तेजाराम बिश्नोई (तेजपाल खिलेरी), ग्राम: शिमला, पोस्ट: खारा-345023 मोबाइल: 8529455279
  • संदर्भः
    • यह लेख "अमर ज्योति" पत्रिका के जनवरी 2025 अंक में पृष्ठ संख्या 33 से 36 पर प्रकाशित हुआ था।

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