ओ३म् गुरु चीन्हों गुरु चिन्ह पुरोहित, गुरु मुख धर्म बखांणी। जो गुरु होयवा सहजै शीले शब्दे नादे वेदे, तिहिं गुरु का आलिंकार पिछाणी। छव दरशण जिहिं के रुपण थापण, संसार बरतण निज कर थरप्या, सो गुरु प्रत्यक्ष जाणी। जिहिं के खरतर गोठ निरोतर वाचा, रहिया रुद्र समाणी। गुरु आप संतोषी अवरां पोषी, तत्त्व महारस बाणी। के के अलिया बासण होत हुताषण तामै क्षीर दुहीजूं। रसुवन गोरस घीय न लीयूं, तहां दूध न पाणी। गुरु ध्याइयेरे ज्ञानी। तोड्त मोहा अति खुरसांणी, छीजत लोहा पाणी। छल तेरी खाल पखाला, सतगुरु तोडे मन का साला। सतगुरु है तो सहज पिछाणी, कृष्ण चरित्र विन काचे करवे रह्यो न रहसी पाणी ॥1॥
सबद वाणी सबद - 2
ओ३म् मोरे छाया न माया लोहू न मांसू रक्तुं न धातुं। मोरे माई न बापूं आपण आपूं। रोही न रापूं, कोपूं न कलापूं, दुःख न सरापूं। लोई अलोई, त्यूं तृलोई, ऐसा न कोई जपां भी सोई। जिहीं जपे आवागवण न होई। मोरी आद न जाणत, महियल धूंवां बखाणत। उर्ध ठाकले तृसूलूं। आद अनाद तो हम रचिलो। हमें सिरजीलो सैकौण। म्हे जोगी के भोगी के अल्प अहारी। ज्ञानी के ध्यानी, के निज कर्म धारी। सोषी के पोषी के जल बिंबधारी। दया धर्म थापले निज बाला ब्रह्मचारी ॥2॥
सबद वाणी सबद - 3
ओ३म् मोरे अंग न अलसी तेल न मलियो। ना परमल पीसीयों। जीमत पीवत भोगत बिलसत। दीसां नाहीं महा पण को आधारुं। अड़सठ तीरथ हिरदा भीतर, बाहर लोका चारुं। नान्हीं मोटी जीया जूंणी। एती सास फुरन्ते सारुं। बासन्दर क्यूं एक भणिजै। जिहिं के पावन पिराणों। आला सूका मेल्हे नाहीं, जिहीं दिश करै मुहाणों। पापै गुन्है वीहै नाहीं। रीस करै रिसाणौं। बहुली दौरे लावण हारुं। भावे जाण मैं जाणूं। न तूं सुर नर न तूं शंकर। न तूं रावन राणौं। काचै पिंड अकाजे चलावें महा अधूरत दाणों। मोरै छुरी न धारुं, लोह न सारुं, न हथियारुं। सुरज का रिपु बिहंडा नाहीं, तातै कहा उठावत भारुं। जिहीं हाकणड़ी बलद जूं हाके, न लोहे की आरु ॥3॥
सबद वाणी सबद - 4
ओ३म् जद पवन न होता पाणी न होता। न होता धर गैणारूं। चन्द न होता सूर न होता, न होता गंगदर तारूं। गउ न गोरुं माया जाल न होता। न होता हेत पियारुं। माय न बाप न बहण न भाई, साखण सैण न होता। न होता पख परवारुं। लख चौरासी जीया जूणी न होती। न होती बणी अठारा भारुं। सप्त पताल फुणीद न होता। न होता सागर खारुं। अजिया सजिया जीया जुणी न होती। न होती कुड़ी भरतारुं। अर्थ न गर्थ न गर्व न होता। न होता तेजी तुरंग तुखारुं। हाट पट्ण बाजार न होता। न होता राजदवारुं। चाव न चहन न कोह का बाण न होता। तद होता एक निरंजन शंभू। के होता धंधुकारुं। बात कदो की पुछै लोई। जुग छतीसूं विचारुं। ताह परै रे अवर छतीसूं। पहला अन्त न पारुं। म्हे तद पण होता अब पण आछै, बल-बल होयसां। कह कद कद का करुं विचारु ॥4॥
सबद वाणी सबद - 5
ओ३म् अइया लो अपरं पर बाणी। म्हे जपां न जाया जीऊं। नव अवतार नमो नारायण, तेपण रुंप हमारा थीयूं। जपी तपी तक पीर ॠषेश्वर कायं जपीजै तेपण जाया जीऊं। खेचर भूचर षेत्रपाला परगट गुप्ता। कायं जपीजै तेपण जाया जीऊं। बासग शेष गुणिन्दा फुणिन्दा। कायं जपीजै तेपण जाया जीऊं। चौसट जोगनि बावन बीरुं। कायं जपिजै तेपण जाया जीऊं। जपां तो एक निरालंभ शंभु। जिहीं के माई न पीऊं। न तन रक्तुं, न तन धातुं। न तान ताव न सीऊं। सर्व सिरजत मरत बिबरजात। तासन मुलज लेणा कीयों। अइया लो अपरं पर बाणी। म्हे जपां न जाया जीऊं ॥5॥
सबद वाणी सबद - 6
ओ३म् भवन भवन म्हे एका जोती। चुन चुन लीया रतना मोती। म्हे खोजी थापण होजी नाहीं, खोज लहां धुरुं खोजूं। अलाह अलेख अडाल अजोनी स्वयंभू। जिहिं का किसा बिनाणी। म्हे शरै न बैठा सीख न पूछी, निरत सुरत सब जाणी। उप्पत्ति हिन्दू जरणा जोगी, क्रिया ब्राह्मण, दिल दरबेसां उन्मुन मुद्रा अकल मिसलमानी ॥6॥
सबद वाणी सबद - 7
ओ३म् हिन्दू होयके हर क्यूं ना जंप्यो। कायं दह दिश दिल पसरायों। सोम अमावस आदितवारी। कायं काटी बनरायों। गहण गहंते, बहण बहंते, निर्जल ग्यारस मूल बहंते। कायं रे मुरखां तें पालंग सेज निहाल बिछाई। जा दिन तेरे होम न जाप न तप न क्रिया। जाण के भागी कपिला गाई। कूड़ तणों जे करतब कीयो, नातें लाव न सायों। भूला प्राणी आल बखाणी। न जंप्यो सुररायों। छंदे कहां तो बहुता भावे। खरतर को पतियायों। हिव की बेलां हिव न जाग्यो, शंक रह्यो कदरायों। ठाढी बेलां ठार न जाग्यो, ताती बैलां तायों। बिम्बे बेलां विष्णु न जंप्यां, ताछै का चीन्हों कछु कमायों। अति आलस भोला वे भूला, न चीन्हों सुर रायों। पारब्रह्म की सुध न जाणीं, तो नागे जोग न पायो परशुराम के अर्थ न मुवा, ताकी निश्चय सरी न कायोंं ॥7॥
सबद वाणी सबद - 8
ओ३म् सुणरे काजी सुणरे मुल्लां। सुणरे बकर कसाई। किणरी थरपी छाली रोसो किणरी गाडर गाई। सुल चुभीजै करक दुहेली तो है है जायो जीव न घाई। थे तुर्की छुर्की भिस्ती दावो, खायवा खाज अखाजूं। चर फिर आवे सहज दुहावे तिसका क्षीर हलाली। जिसके गले करद क्यूं सारो थे पढ़ सुण रहिया खाली ॥8॥
सबद वाणी सबद - 9
ओ३म् दील साबत हज कोबा नड़ै। क्या उलबंग पुकारो। भाई नाऊं बलद पियारो। ताके गले करद क्यूं सारो। बिन चिन्हें खुदाय बिबरजत केहा मुसलमानों। काफर मूकर होयकर राह गमायो। जोय जोय गाफल करै धिगाणो। ज्यूं थे पच्छिम दिशा उलबंग पुकारो, भलजे यों चीन्हों रहमाणों। तो रुंह चलंते पिंड पडंते। आवे भिस्त बिमाणों। चढ-चढ भीते मड़ी मसीते क्या उलबंग पुकारो। काहे काजे गऊ बिणासो। तो करीम गऊ क्यूं चारी। काहीं लीयूं दुधुं दहियूं, काहे लीयों घियूं महियूं। काहे लीयूं हाडूं मासूं। काहे लीयूं रक्तुं रुंहियूं। सुणरे काजे सुणरे मुल्ला। यामै कौन भया मुरदारुं। जीवां ऊपर जोर करीजै। अंतकाल होयसी भारू ॥9॥
सबद वाणी सबद - 10
ओ३म् बिसमिल्ला रहमान रहीम। जिहिं के सदके भीना भीन तो भेटीलो रहमान रहीम। करीम काया दिल करणी। कलमा करतब कौल कुराणों। दिल खोजो दरवेश भईलो। तइया मुसलमाणों। पीरां पुरुंषा जमी मुसल्लां। कर्तब लेक सलामों। हम दिल लिल्ला तुम दिल लिल्ला। रहम करे रहमाणों। इतने मिसले चालो मीयां। तो पावो भिस्त इमाणों ॥10॥
सबद वाणी सबद - 11
ओ३म् दिल साबत हज काबो नड़े क्या उलबंग पुकारो। सीन सरवर करो बंदगी हक्क नमाज गुजारो। इहिं हेड़ै हर दिन की रोजीतो इस ही रोजी सारो। आप खुदाबंद लेखो मांगे रे बिनही गुन्हें जीव क्यूं मारो। थे तक जाणों तक पिड़ न जाणों बिन परचे बाद नमाज गुजारो। चर फिर आवे सहज दुहावे। जिसका क्षीर हलाली। तिसके गले करद क्यों सारो थे पढ सुण रहिया खाली। थे चढ-चढ भिते मडी मसीते। क्या उलबंग पुकारो। कारण खोटा करतब हीणा थारी खाली पडी नमाजूं। किंहिं ओजू तुम धोवो आप किंहिं ओजू तुम खंडा पाप। किंहि ओजू तुम धरो ध्यान। किहीं ओजू चिन्हों रहमान। रे मुल्ला मन माहिं मसीत नमाज गुजारिये सुणता ना क्या खड़ा पुकारिये। अलख न लखियो खलक पिछाण्यो चाम कटे क्या हुइयों। हक्क हलाल पिछाण्यों नाहीं तो निश्चै गाफल दोरे दीयों ॥11॥
सबद वाणी सबद - 12
ओ३म् महमद महमद न कर काजी। महमद का तो विषम विचारुं। महमद हाथ करद जो होती लोहे घड़ी न सारुं। महमद साथ पयंबर सीधा एक लाख असी हजारुं। महमद मरद हलाली होता तुमहीं भये मुरदारुं ॥12॥
सबद वाणी सबद - 13
ओ३म् कांयरे मुरखा तैं जन्म गमायो। भुंय भारी ले भारुं। जादिन तेरे होम न जाप न तप न क्रिया। गुरु न चीन्हों पंथ न पायो अहल गई जमवारुं। तांती बेलां तावन जाग्यो ठाढी बेला ठारुं। बिंबैं बैला विष्णु न जंप्यो। तातै बहुत भई कसवारुं। खरी न खाटी देह बिणाठी थीर न पावना पारुं। अहनिश आव घटन्ती जावे तेरा श्वास सबी कसवारुं। जा जन मंत्र विष्णु न जप्यो। ते नर कुबरण कालूं। जा जन मन्त्र विष्णु न जंप्यो, ते नगरे कीर कहारूं। जा जन मन्त्र विष्णु न जंप्यो, कांध सहै दुःख भारुं। जा जन मंत्र विष्णु न जप्यो, ते घण तण अहारुं। जा जन मंत्र विष्णु न जप्यो, ताको लोही मांस विकारुं। जा जन मंत्र विष्णु न जप्यो। गांवे गाडर शहरै सूवर जन्म-जन्म अवतारुं। जा जन मन्त्र विष्णु न जंप्यो, ओडा के घर पोहण होयसी, पीठ सहै दुःख भारूं। जा जन मन्त्र विष्णु न जंप्यो, राने वासो मोनी वैसे ढ़ूकै सूर सवारूं। जा जन मंत्र विष्णु न जप्यो, ते अचल उठावत भारुं। जा जन मंत्र विष्णु न जप्यो, ते न उतरिबा पारुं। जा जन मंत्र विष्णु न जप्यो, ते नर दौरे घुपं अंधारुं। तातै तंत न मंत न जड़ी न बूंटी, उंडी पड़ी पहारुं। विष्णु न दोष किसो रे प्राणी तेरी करणी का उपकारुं ॥13॥
सबद वाणी सबद - 14
ओ३म् मोरा उपख्यान वेदूं कण तत्त्व भेदूं। शास्त्रे पुस्तके लिखणां न जाई। मेरा शब्द खोजो ज्यूं शब्दे शब्द समाई। हिरणा दोह क्यूं हिरण हतीलूं। कृष्ण चरित बिन क्यूं बाघ बिडारत गाई। सुनहीं सुनहां का जाया मुरदा बघेरी बघेरा न होयबा। कृष्ण चरित बिन सींचाण कबही न सुजीऊं। खर का शब्द न मधुरी बाणी कृष्ण चरित बिन श्वान न कबही गहीरूं। मुंडी का जाया मुंडा न होयबा कृष्ण चरित बिन रीछा कबही न सुचीलूं। बिल्ली की इन्द्री सन्तोष न होयबा कृष्ण चरित बिन काफरा न होयबा लीलूं। मुरगी का जाया मोरा न होयबा कृष्ण चरित बिन भाखला न होयबा चीरूं। दंत बिवाई जन्म न आई कृष्ण चरित बिन लोहे पड़े न काठ की सूलूं। नीबडिये नारेल न होयबा कृष्ण चरित बिन छीलरे न होयबा हीरूं। तूंबण नागर बेल न होयबा कृष्ण चरित बिन बावली न केली केलूं। गऊ का जाया खगा न होयबा कृष्ण चरित बिन दया न पालत भीलूं। सूरी का जाया हस्ती न होयबा कृष्ण चरित बिन ओछा कबहीं न पूरूं। कागण का जाया कोकला न होयबा कृष्ण चरित बिन बुगली न जनिबा हंसूं। ज्ञानी के हृदय परमोद आवत अज्ञानी लागत डासूं ॥14॥
सबद वाणी सबद - 15
ओ३म् सुरमां लेणां झीणा शब्दूं, म्हे भूल न भाख्या थूलूं। सो पति बिरषा सींच प्राणी, जिंहीं का मीठा मूल समूलूं। पाते भूला मूल न खोजो, सींचों कांय कुमूलूं। विष्णु विष्णु भण अजर जरीजे, यह जीवन का मूलूं। खोज प्राणी ऐसा बिनाणी केवल ज्ञानी ज्ञान गहीरूं। जिहिं के गुणै न लाभत छैहूं। गुरु गेंवर गरवा शीतल नीरूं मेवा ही अति मेऊं। हिरदै मुक्ता कमल सन्तोषी, टेवा ही अति टेऊं। चढकर बोहिता भव जल पार लंघावै। सो गुरु खेवट खेवा खेहूं ॥15॥
सबद वाणी सबद - 16
ओ३म् लोहे हूंता कंचन घड़ियो, घड़ियो ठाम सुठाऊं। जाटा हूंता पात करीलूं, यह कृष्ण चरित परिवाणों। बेड़ी काठ संजोगे मिलिया, खेवट खेवा खेहूं। लोहा नीर किसी विध तरिबा, उत्तम संग सनेहूं। बिन किरिया रथ बैसेला, ज्यूं काठ संगीणी लोहा नीर तरीलूं। नांगड़ भांगड़ भूला महियल, जीव हतै मड़ खाईलो ॥16॥
सबद वाणी सबद - 17
ओ३म् मोरे सहजे सुन्दर लोतर बाणी। ऐसो भयो मन ज्ञानी। तईया सासूं तईया मासूं रक्तू रूहीयों। खीरूं नीरूं ज्यूं कर देखूं ज्ञान अदेसूं। भूला प्राणी कहे सो करणों। अई अमाणों तत्त्व समाणों। अड्या लो म्हे पुरुष न लेणा नारी। सोदत सागर सो सुभ्यागत। भवन भवन भिखियारी भीखी लो भिखियारी लो। जे आदि परम तत्त्व लाधो। जाके बाद बिराम बिरासो सांसो। ताने कौन कहसी साल्हिया साधु ॥17॥
सबद वाणी सबद - 18
ओ३म् जां कुछ जां कुछ जां कछु न जाणी। ना कुछ ना कुछ तां कुछ जाणी। ना कुछ ना कुछ अकथ कहांणी, ना कुछ ना कुछ अमृत वाणी। ज्ञानी सो तो ज्ञानी रोवत, पढिया रोवत गाहै। कैल करंता मोरी मोरा रोवत जोय जोय पगां दिखाहीं। ऊर्ध्व खैणी मन उन्मन रोवत, मुरखा रोवत धाहीं। मरणत माघ संघारत खेती के के अवतारी रोवत राही। ज़डिया बूंटी जे जग जीवै तो वेदा क्यूं मर जाई। खोज प्राणी ऐसा बिनाणी नुगरा खोजत नाहीं। जां कुछ होता ना कुछ होयसी बल कुछ होयसी ताहीं ॥18॥
सबद वाणी सबद - 19
ओ३म् रूप अरूप रमू पिण्डे ब्रह्मण्डे घट घट अघट रहायों। अनन्त जुगां मैं अमर भणीजूं, न मेरे पिता न मायों। ना मेरे माया न छाया रूप न रेखा बाहर भीतर अगम अलेखा। लेखा एक निरंजन लेसी जहां चीन्हों तहां पायों। अड़सठ तीर्थ हिरदा भीतर कोई कोई गुरु मुख बिरला न्हायों ॥19॥
सबद वाणी सबद - 20
ओ३म् जां जां दया न मया तां तां बिकरम कया। जां जां आव न वैसूं। तां तां स्वर्ग न जैसूं। जां जां जीव न जोती। तां तां मोक्ष न मुक्ति। जां जां दया न धर्मू। तां तां बिकरम कर्मू। जां जां पाले न शीलूं। तां तां कर्म कुचीलूं। जां जां खोज्या न मूलूं। तां तां प्रत्यक्ष थूलूं। जां जां भेद्यां न भेदूं। तो स्वर्गे किसी उमेदूं। जां जां घमण्डे स घमण्डूं। ताकै ताव न छायों सूते सास नसायों ॥20॥
सबद वाणी सबद - 21
ओ३म् जिहिं के सार असारूं। पार अपारूं, थाघ अथाघूं। उमग्या समाघूं, ते सरवर कित नीरूं। बाजा लो भल बाजा लो, बाजा दोय गहीरूं। एकण बाजे नीर बरसै, दूजे मही बिरोलत खीरूं। जिहिं के सार असारूं, पार अपारूं, थाघ अथाघू, उमग्या समाघूं। गहर गम्भीरूं, गगन पयाले, बाजत नादू, माणक पायो। फैर लुकायो, नहीं लखायो। दुनियां राती बाद बिवादूं, बाद बिवादे दांणू खीणा, ज्यूं पहुंपे खीणा भंवरी भंवरा। भावे जाण मजाण प्राणी जौले का रिप जवरा। भेर बाजा तो एक जोजनो अथवा तो दोय जोजनो। मेघ बाजा तो पंच जोजनो अथवा तो दश जोजनो। सोई उत्तम लेरे प्राणी जुगां जुगाणीं सत करुं जाणी। गुरु का शब्द ज्यूं बोलो झींणी बाणी। जिहिं का दूरां हूंते दूर सुणीजे। सो शब्द गुणाकारूं गुणा सारूं बले अपारूं ॥21॥
सबद वाणी सबद - 22
ओ३म् लो लो रे राजिन्दर रायों। बाजे बाव सुवायों, आभे अमी झुरायों। कालर करषण कीयों नेपै कछु न कीयों। अड्या उत्तम खेती, को को अमृत रायों। को को दाख दिखायों, को को ईख उपायों। को को नींब निबोली, को को ढ़ाक ढ़कोली। को को तूषण तूबन बेली, को को आक अकायों। को को कछु कबायों। ताका मूल कुमूलूं, डाल कुडालूं। ताका पात कुपातूं ताका फल बीज कुबीजूं। तो नीरे दोष किसायों। क्यूं क्यूं भये भागे ऊंणा, क्यूं क्यूं कर्म बिहूणा। को को चिड़ी चमेड़ी, को को उल्लू आयो। ताके ज्ञान न जोती, मोक्ष न मुक्ति। याके कर्म इसायों, तो नीरे दोष किसायों ॥22॥
सबद वाणी सबद - 23
ओ३म् साल्हिया हुआ मरण भय भागा, गाफिल मरणे घणा डरे। सतगुरु मिलियो सतपंथ बतायो, भ्रांत चुकाई, मरणे बहु उपकार करे। रतन काया सोभंति लाभे, पार गिराये जीव तिरे। पार गिरायें सनेही करणी। जंपो विष्णु न दोय दिल करणी। जंपो विष्णु न निन्दा करणी। मांडो कांध विष्णु के सरणे। अतरा बोल करो जे सांचा। तो पार गिराये गुरु की वाचा। रवणा ठवणा चवरा भवणा। ताहि परेरै रतन काया छै, लाभे किसे बिचारे। जे नवीये नवणी, खवीये खवणी, जरिये जरणी, करिये करणी, तो सीख हुआ घर जाइये। रतन काया साचे की ढोली गुरु परसादे केवल ज्ञाने। धर्म अचारे शीले संजमें सतगुरु तुठे पाइये ॥23॥
सबद वाणी सबद - 24
ओ३म् आसण बैसण कूड़ कपटण, कोई कोई चीन्हत बोजू बाटे। बोजू बाटे जे नर भया काची काया छोड़ कैलाशे गया ॥24॥
सबद वाणी सबद - 25
ओ३म् राज न भूलीलो राजेन्दर दुनी न बंधै मेरूं। पवणा झोले बीखर जेला धूवर तणा जे लोरूं। बोलस आभ तणा लह लोरूं, आडा डम्बर केती बार बिलंबण। यो संसार अनेहूं। भूला प्राणी विष्णु न जंप्यो, मरण बिसारो केहूं। म्हा देखंता देव दाणू सुर नर खीणा। जंबू मंझे राचि न रहिबा थेहूं। नदिये नीर न छीलर पाणी धूवर तणा जे मेहूं। हंस उडाणो पंथ बिलंब्यो, आशा सांस निराष भईलो। ताछे होयसी रंड निरंडी देहूं। पवणा झोले बीखर जैला गैण बिलंबी खेह ॥25॥
सबद वाणी सबद - 26
ओ३म् घण तण जीम्या को गुण नाहीं मल भरिया भंडारूं। आगे पीछे माटी झूलै, भूला बहे जभारूं। घणा दिना का बड़ा न कहिबा, बड़ा न लघिबा पारूं। उत्तम कुली का उत्तम न होयबा, कारण क्रिया सारूं। गोरख दीठा सिद्ध न होयवा, पोह उतरिबा पारूं। कलजुग बरतै चेतो लोई, चेतो चेतण हारूं। सतगुरु मिलियो सत पंथ बतायो भ्रांति चुकाई। बिदगा रातै उदगा गारूं ॥26॥
सबद वाणी सबद - 27
ओ३म् पढ़ कागल वेदूं शास्त्र शब्दूं, पढ़ सुण रहिया कछु न लहिया। नुगरा उमग्या काठ पषाणो। कागल पोथा ना कुछ थोथा। ना कुछ गाया गीऊं। किण दिश आवे किण दिश जावे, माई लखै ना पीऊँ। इंडे मध्ये पिंड उपन्ना, पिण्डे मध्ये बिंब उपन्ना, किण दिश पैठा जीऊँ। इंडे मध्ये जीव उपन्ना। सुण रे काजी सुण रे मुल्ला, पीर ऋषेश्वर रे मस वासी। तीर्थ वासी, किण घट बैठा जीऊँ। कंसा शब्दे कंस लुकाई बाहर गई न रीऊँ। क्षिण आवे क्षिण बाहर जावे रुत कर बरसत सीऊँ। सोवन लंक मंदोदर काजै, जोय जोय भेद विभीषण दियो। तेल लियो खल चौपे जोगी, तिहिं को मोल थोड़ेरो कियो। ज्ञाने ध्याने नादे वेदे जे नर लेणा, तत भी ताही लीयों। करण दधीच सिवर बल राजा, हुई का फल लियो। तारादे रोहितास हरिचन्द, काया दशबन्ध दीयो। विष्णु अजंप्या जन्म अकारथ आके डोडा खींपे फलियों। काफर बिबरजत रूहीयूं। सेतू भांतू बहु रंग लेणा, सब रंग लेणा रूहीयूं। नाना रे बहु रंग न राचे काली ऊन कुजीऊँ। पाहे लाख मजीठी राता, मोल न जिहिं का रूहियूं। कबही वो गृह ऊथरि आवै, शैतानी साथे लियों। ठोठ गुरु वृषलि पति नारी, जद बंकै जद बीरूं। अमृत का फल एक मन रहिबा, मेवा मिष्ट सुभायों। अशुद्ध पुरुष वृषलि पति नारी, बिन परचे पार गिराय न जाई। देखत अन्धा सुणता बहरा तासों कछु न बसाई ॥27॥
सबद वाणी सबद - 28
ओ३म् मच्छी मच्छ फिरे जल भीतर, तिहिं का माघ न जोयबा। परम तत्त्व है ऐसा आछें, उरबार न ताछे पारूं। बोवड़ छोवड़ कोई न थीयों, तिहिं का अन्त लहीबा कैसा । ऐसा लो भल ऐसा लो, भल कहो न कहा गहीरूं। परम तत्त्व के रूप न रेखा, लीक न लेहूं खोज न खेहूं। बरण बिबरजत, भार्दै खोजो बावन बीरूं। मीन का पंथ मीन ही जाणे, नीर सुरंगम रहियूं। सिध का पंथ कोई साधु जाणत, बीजा बरत न बहियों मच्छी मच्छ फिरे जल भीतर, तिहिं का माघ न जोयबा। परम तत्त्व है ऐसा आछें, उरबार न ताछें पारूं। बोवड़ छोवड़ कोई न थीयों, तिहिं का अन्त लहीबा कैसा। ऐसा लो भल ऐसा लो, भल कहो न कहा गहीरूं। परम तत्त्व के रूप न रेखा, लीक न लेहूं खोज न खेहूं। बरण बिबरजत, भावै खोजो बावन बीरूं। मीन का पंथ मीन ही जाणे, नीर सुरंगम रहियूं। सिध का पंथ कोई साधु जाणत, बीजा बरत न बहियों ॥28॥
सबद वाणी सबद - 29
ओ३म् गुरु के शब्द असंख्य प्रबोधी खार समन्द परीलो। खार समन्द परे परे रै चैखण्ड खारूं, पहला अन्त न पारूं। अनन्त क्रोड़ गुरु की दावण बिलंबी, करणी साच तरीलो। सांझे जमों सवेरे थापण, गुरु की नाथ डरीलो। भगवीं टोपी थल शिर आयो, हेत मिलाण करीलो। अम्बाराय बधाई बाजे, हृदय हरि सिंवरीलो। कृष्ण मया चैखण्ड कृषांणी, जम्बूदीप चरीलो। जम्बूदीप ऐसो चर आयो, इसकंदर चेतायो। मान्यो शील हकीकत जाग्यो, हक की रोजी धायों। ऊंनथ नाथ कुपह का पोह मा आण्यां, पोह का धुर पहुंचायो। मोरे धरती ध्यान बनस्पति बासों, ओजू मण्डल छायों। गींदू मेर पगाणे पर्वत, मनसा सोड़ तुलायों। ऐ जुग चार छतीसां और छतीसां, आश्रा बहै अंधारी। म्हे तो खड़ा बिहायों। तेतीसां की बरग बहां म्हे बारां काजै आर्यों। बारां थाप घणा न ठाहर, मतां तो डीलै डीलै क्रोड़ रचायों। म्हे ऊंचे मण्डल का रायों। समंद बिरोल्यो बासग नेतो, मेर मथाणी थायों। संसा अर्जुन मारयो, कारज सारयो। जद म्हे रहस दमामा बायों। फेरी सीत लई जद लंका, तद म्हे ऊंथे थायों। दहशिर का दश मस्तक छेद्या, बाण भला निर तायों। म्हे खोजी थापण होजी नाहीं, लह लह खेलत डायों। कंसा सुर सूं जूवे रमिया, सहजे नन्द हरायों। कूंत कुंवारी कर्ण समानो, तिहिं का पोह पोह पड़दा छायों। पाहे लाख मजीठी पाखो, बन फल राता पींझू पाणी के रंग धायों। तेपण चाख न चाख्या, भाख न भाख्या, जोय जोय लियो फल फल केर रसायों। थे जोग न जोग्या भोग न भोग्या, न चीन्हों सुर रायों। कण बिन कूकस कांय पीसो, निश्चै सरी न कायों। म्हे अवधू निरपख जोगी, सहज नगर का रायों। जो ज्यूं आवे सो त्यूं थरपां, साचा सूं सत भायों। मोरे मन ही मुद्रा तन ही कंथा, जोग मारग सहडायों। सात सायर म्हे कुरलै कीयों। ना म्हे पिया न रह्या तिसायों। डाकण साकण निद्रा खुद्या, ये म्हारे तांबे कूप छिपायों। म्हारे मन ही मुद्रा तन ही कंथा, जोग मारग सहलीयों। डाकण साकण निद्रा खुद्या, ये मेरे मूल न थीयों ॥29॥
सबद वाणी सबद - 30
ओ३म् आयो हंकारो जीवड़ो बुलायो। कह जीवड़ा क्या करण कमायो। थरहर कंपै जीवड़ो डोलै, उतमाई पीव न कोई बोलै। सुकरत साथ संगाई चालै, स्वामी पवणा पाणी नवण करंतो। चन्दे सूरे शीस नवन्तो, विष्णु सुरां पोह पूछ लहन्तो। इंहिं खोटे जन मन्तर स्वामी, अहनिश तेरो नाम जपन्तो। निगम कमाई मांगी मांग। सुरपति साथ सुरा सुरंग, सुरपति साथ सुरा सूं मेलो। निज पोह खोज ध्याइये। भोम भली कृषाण भी भला, बूठो है जहां बाहिये। करषण करो सनेही खेती, तिसिया साख निपाइये। लुण चुण लीयों मुरा तब कीयों, कण काजै खड़ गाहिये। कण तुस झेड़ो होय नवेड़ो, गुरुमुख पवन उड़ाइये। पव पवणा डोलै तुस उड़ेला कण ले अर्थ लगाइये। यूं क्यूं भलो जे आप न जरिये, औरां अजर जराइये। यूं क्यूं भलो जे आप न फरिये, औरां अफर फराइये। यूं क्यूं भलो जे आप न डरिये, औरां अडर डराइये। यूं क्यूं भलो जे आप न मरिये, औरां मारण धाइये। पहले क्रिया आप कमाइये, तो औरां ने फरमाइये। जो कुछ कीजै मरणे पहले, मत भल कहिं मर जाइये। शौच स्नान करो क्यूं नाहीं, जिवड़ा काजै न्हाइये। शौच स्नान कियो जिन नाहीं, होय भंतूला बहाइये। शील विवर्जित जीव दुहेलो, यमपुरि ये संताइये। रतन काया मुख सूवर बरगो, अबखल झंखे पाइये। सवामण सोनो करणे पाखो, किण पर वाह चलाइये। एक गऊ ग्वाला ऋषि मांगी, करण पखो किण सुरह सुबच्छ दुहाइये। करण पखो किन कंचन दीन्हों, राजा कवन कहाइये। रिण ऋध्ये स्वामी करण पाखो, कुण हीराडसन पुलाइये। किहिं निश धर्म हुवे धुर पूरो, सुर की सभा समाइये। जे नविये नवर्णी, खविये खवणी, जरिये जरणी, करिये करणी। तो सीख हुआं घर जाइये। अह निश धर्म हुवे थुर पूरो, सुर की सभा समाइये। किहिं गुण बिदरो पार पहुंतो, करणै फेर बसाइये। मन मुख दान ज्यूं दीन्हों करणे, आवागवण जु आइये। गुरु मुख दानजु दीन्हों बिदरे सुर की सभा समाइये। निज पोह। पाखो पार असीपुर, जाणे गीत विवाहे गाइये। भरमी भूला वाद विवाद, आचार विचार न जाणत स्वाद। कीरती के रंग राता मुरखा। मन हठ मरै ते पार गिराये, कित उतरे ॥30॥
सबद वाणी सबद - 31
ओ३म् भल मूल सींचो रे प्राणी ज्यूं का भल बुद्धि पावै। जामण मरण भव काल जु चूके, तो आवागवण न आवे। भल मूल सींचो रे प्राणी, ज्यूं तरवर मेलत डालूं। हरि पर हरि की आण न मानी, झंख्या झूल्या आलूं। देवा सेवा टेव न जांणी, न बंच्या जम कालूं। भूले प्राणी विष्णु न जंप्यो, मूल न खोज्यो, फिर फिर जोया डालूं। बिन रैणायर हीरे नीरे, नगन सीपे तके न खोला नालूं। चलन चलन्ते बास बसन्ते जीव जीवन्ते काया नवन्ते सास फुरंते। कांयरे प्राणी विष्णु न घाती भालूं। घड़ी घटन्तर पहर पटंतर, रात दिनंतर, मास पखंतर। क्षिण ओल्हरवा कालूं। मीठा झूठा मोह बिटंबण, मकर समाया जालूं। कबही को बाइंदो बाजत लोई, घडिया मस्तक तालूं। जीवां जूंणी पड़े परासा ज्यूं झींवर मच्छी मच्छा जालूं। पहलै जिवड़ो चेत्यो नाहीं, अब ऊंडी पड़ी पहारूं। जीवर पिंड बिछोड़ो होयसी, तादिन थाक रहे शिर मारूं ॥31॥
सबद वाणी सबद - 32
ओ३म् कोट गऊ जे तीरथ दानों, पंच लाख तुरंगम दानों। कण कंचन पाट पटम्बर दानों, गज गेंवर हस्ती अति बल दानों। करण दधीच सिंवर बल राजा, श्री राम ज्यूं बहुत करै आचारूं। जां जां बाद-बिवादी अति अहंकारी लबद सवादी। कृष्ण चरित बिन नाहिं उतरिबा पारू ॥32॥
सबद वाणी सबद - 33
ओ३म् कवण न हुवा कवण न होयसी, किण न सह्यो दुःख भारूं। कवण न गइया कवण न जासी, कवण रह्या संसारूं। अनेक अनेक चलंता दीठा, कलि का माणस कौन विचारूं। जो चित होता सो चित नाहीं, भल खोटा संसारूं। किसकी माई किसका भाई, किसका पख परवारूं। भूली दुनियां मर मर जावे, न चीन्हों करतारूं। विष्णु विष्णु तू भणरे प्राणी, बल बल बारम्बारूं। कसणी कसबा भूल न बहबा, भाग परापति सारूं। गीता नाद कविता नाऊं, रंग फटारस टारूं। फोकट प्राणी भर में भूला, भलजे यो चीन्हों करतारूं। जामण मरण बिगोवो चूकै, रतन काया ले पार पहुंचै तो आवागवण निवारू ॥33॥
सबद वाणी सबद - 34
ओ३म् फुरण फुहारै कृष्णी माया, घण बरसंता सरवर नीरे। तिरी तिरन्ते जे तिस मरे तो मरियों। अन्नो धन्नों दूधूं दहियूं। घीऊं मेऊं टेऊं जे लाभन्ता भूख मरै तो जीवन ही बिन सरियों। खेत मुक्त ले कृष्णा अर्थों, जे कन्ध हरे तो हरियों। विष्णु जपन्ता जीभ जू थाके, तो जीभडिया बिन सरियों। हरि हरि करता हरकत आवै तो ना पछतावो करियों। भीखी लो भीखियारी लो, जे आदि परम तत्त्व लाधो। जाकै बाद बिराम बिरासों सासों, ताने कौन कहसी साल्हिया साधो ॥34॥
सबद वाणी सबद - 35
ओ३म् बल बल भणत व्यासूं, नाना अगम न आसूं द्य नाना उदक उदासूं द्य बल बल भई निरसूं। गल में पड़ी परासूं। जां जां गुरु न चिन्हों, तईया सींच्या मूलूं। कोई कोई बोलत थूलूं ॥35॥
सबद वाणी सबद - 36
ओ३म् काजी कथै कुराणों, न चीन्हों फरमाणों। काफर थूल भयाणों। जइया गुरु न चीन्हों, तइया सींच्या न मूलूं। कोई कोई बोलत थूलूं ॥36॥
सबद वाणी सबद - 37
ओ३म् लोहा लंग लुहारूं ठाठां घड़े ठठारूं। उत्तम कर्म कुम्हारूं। जइया गुरु न चीन्हों, तइया सींच्या न मूलूं। कोई कोई बोलत थूलूं ॥37॥
सबद वाणी सबद - 38
ओ३म् रे रे पिंडस पिंडू, निरघन जीव क्यूं खण्डू। ताछे खण्ड बिहण्डूं, घड़िये से घमण्डूं। अइया पंथ कुपंथं। जइया गुरु न चीन्हों, तइया सींच्या न मूलूं। कोई कोई बोलत थूलूं ॥38॥
सबद वाणी सबद - 39
ओ३म् उत्तम संग सुसंगू, उत्तम रंग सुरंगू। उत्तम लंग सुलंगू, उत्तम ढंग सुढंगू। उत्तम जंग सुजंगू। ताते सहज सुलीलूं। सहज सुपंथू, मरतक मोक्ष दुवारू ॥39॥
सबद वाणी सबद - 40
ओ३म् सप्त पताले तिहुँ त्रिलोके। चवदा भवने गगन गहिरे। बाहर भीतर सर्व निरन्तर। जहां चिन्हों तहां सोई। सतगुरु मिलियो सत पंथ बतायो भ्रान्त चुकाई। अवर न बुझवा कोई ॥40॥
सबद वाणी सबद - 41
ओ३म् सुण राजेन्दर, सुण जोगेन्दर। सुण शेषिन्दर, सुण सोफिन्दर। सुण चाचिन्दर, सिद्धक साध कहाणी। झूठी काया उपजत बिणसत, जां जां नुगरे थिती न जाणी ॥41॥
सबद वाणी सबद - 42
ओ३म् आयसां काहे काजे खेह भकरूड़ो, सेवो भूत मसांणी। घड़े ऊंधै बरसत बहु मेहा। तिहिं मां कृष्ण चरित बिन पड़यो न पड़सी पाणीं। जोगी जंगम, नाथ, दिगम्बर, संन्यासी, ब्राह्मण, ब्रह्मचारी। मनहठ पढिया पण्डित। काजी मुल्ला खेलें आप दुवारी। निश्च कायूं बांयों होयसै, जे गुरु बिन खेल पसारी ॥42॥
सबद वाणी सबद - 43
ओ३म् ज्यूं राज गये राजेन्दर झूरे, खोज गये न खोजी। लाछ मुई गिरहायत झूरै, अर्थ बिहूंणा लोगी। मौर झड़ै कृषाण भी झूरै, बिन्द गये न जोगी। जोगी जंगम, जपिया तपिया, जती तपी तक पीरूं। जिहिं तुल भूला पाहण तोलै, तिहिं तुल तोलत हीरूं। जोगी सो तो जुग जुग जोगी, अब भी जोगी सोई। थे कान चिरावो चिरघट पहरो, आयसां यह पाखण्ड तो जोग न कोई। जटा बधारो जीव संघारो, आयसां यह पाखण्ड तो जोग न होई ॥43॥
सबद वाणी सबद - 44
ओ३म् खरतर झोली खरतर कंथा, कांध सहे दुःख भारूं। जोग तणी थे खबर न पाई, कांय तज्या घरबारूं। ले सूई धागा सींवण लागा, करड़ कसीदी मेख लीयों। जड़ जटा धारी लंधै न पारी। बाद-बिबादी बेकरणों। थे बीर जपो बैताल धियावो कांय न खोजो तत्त्व कणो। आयसां डंडत डंडू मुंडत मुंडू। मुंडत माया मोह किसो। भरमी बादी बादे भूला, कांय न पाली जीव दयों ॥44॥
सबद वाणी सबद - 45
ओ३म् दोय मन दोय दिल सीवी न कंथा। दोय मन दोय दिल पुली न पंथा। दोय मन दोय दिल कही न कथा। दोय मन दोय दिल सुनी न कथा। दोय मन दोय दिल पंथ दुहेला। दोय मन दोय दिल गुरु न चेला। दोय मन दोय दिल बन्धी न बेला। दोय मन दोय दिल रब्ब दुहेला। दोय मन दोय दिल सुई न धागा। दोय मन दोय दिल भीड़े न भागा। दोय मन दोय दिल भेव न भेऊं। दोय मन दोय दिल टेव न टेऊं। दोय मन दोय दिल केल न केला। दोय मन दोय दिल स्वर्ग न मेला। रावल जोगी तांतां फिरियो, अण चिन्हें के चाह्यों। काहे काजै दिशावर खेलो, मन हठ सीख न कायों। थे जोग न जोग्या भोग न भोग्या, गुरु न चीन्हों रायों। कण बिन कूकस कायें पीसो, निश्चय सरी न कायों। बिन पायचिये पग दुःख पावे, अवधू लोहे दुःखी सकायों। पारब्रह्म की शुद्ध न जांणी, तो नागे जोग न पायों ॥45॥
सबद वाणी सबद - 46
ओ३म् जिहिं जोगी के मन ही मुद्रा, तन ही कंथा, पिंडे अगन थंभायो। जिहिं जोगी की सेवा कीजै। तूठो भव जल पार लंघावे। नाथ कहावे मर मर जावे, से क्यूं नाथ कहावे। नान्हीं मोटी जीया जूंणी, निरजत सिरजत फिर फिर पूठा आवे। हमहीं रावल हमहीं जोगी, हम राजा के रायों। जो ज्यूं आवे सो त्यूं थरपां। सांचा सूं सत भायों। पाप न छिपां पुण्य न हारां, करां न करतब लावां वारूं। जीव तड़ै को रिजक न मेटूं, मूवां परहथ सारूं। दौरे भिस्त बिचालै ऊभा मिलिया काम संवारूं ॥46॥
सबद वाणी सबद - 47
ओ३म् काया कंथा मन जो गूंटो, सींगी श्वास उश्वासूं। मन मृग राखले कर कृषाणी। यूं म्हे भया उदासूं। हम ही जोगी हम ही जती, हम ही सती, हम ही राखबा चीत्तूं। पंच पटण नव थानक साधले आद नाथ के भक्तूं ॥47॥
सबद वाणी सबद - 48
ओ३म् लक्ष्मण-लक्ष्मण न कर आयसां, म्हारे साधां पड़े बिराऊं। लक्ष्मण सो जिन लंका लीवी, रावण मारयो, ऐसो कियो संग्रामों। लक्ष्मण तीन भवन को राजा, तेरे एक न गांऊं। लक्ष्मण के तो लख चैरासी जीया जूणी, तेरे एक न जीऊं। लक्ष्मण तो गुणवन्तो जोगी, तेरे बाद बिराऊं। लक्ष्मण का तो लक्षण नाहीं, शीस किसी विध नाऊं ॥48॥
सबद वाणी सबद - 49
ओ३म् अवधू अजरा जार ले, अमरा राखले। राखले बिन्द की धारणा। पताल का पांणी अकाश कू चढ़ायले, भेटले गुरु का दरशणा ॥49॥
सबद वाणी सबद - 50
ओ३म् तइया सांसूं तइया मांसूं तइया देह दमोई। उत्तम मध्यम क्यों जाणीजे, बिबरस देखो लोई। जाके बाद बिराम बिरांसों सांसो, सरसा भोला चालै। ताके भीतर छोत लकोई। जाके बाद बिराम बिरांसों सांसो, भोलो भागो ताके मूले छोत न होई। दिल दिल आप खुदाय बन्द जाग्यो, सब दिल जाग्यो सोई। जो जिन्दो हज काबे जाग्यो, थल सिर जाग्यो सोई। नाम विष्णु के मुसकल घाते, ते काफर शैतानी। हिन्दू होय कर तीरथ न्हावै पिंड भरावै, तेपण रह्या इवांणी। जोगी होय कै मूंड मुंडावे कान चिरावे, गोरख हटड़ी धोके, तेपण रह्या इवांणी। तुरकी होय हज काबो धोके भूला मुसलमाणी। के के पुरुष अवर जागैला, थल जाग्यो निज वाणी। जिहिं के नादे वेदे शीले शब्दे। लक्षणे अन्त न पांरूं। अंजन माहिं निरंजन आछै, सों गुरु लक्ष्मण कवारूं ॥50॥
सबद वाणी सबद - 51
ओ३म् सप्त पताले भुयं अंतर अंतर राखिलो। म्हे अटला अटलूं। अलाह अलेख अडाल अयोनी शंभू। पवन अधारी पिण्ड जलूं। काया भीतर माया आछै। माया भीतर दया आछै। दया भीतर छाया जिहिं के। छाया भीतर बिंब फलूं। पूरक पूर पूरले पोण। भूख नहीं अन्न जीमत कौण ॥51॥
सबद वाणी सबद - 52
ओ३म् मोह मण्डप थाप थापले, राख राखले, अधरा धरूं। आदेश बेसूं, ते नरेसूं, ते नरा अपरं पारूं। रण मध्ये से नर रहियों। ते नरा अडरा डरूं। ज्ञान खड़गूं, जथा हाथे, कौण होयसी हमारा रिपूं ॥52॥
सबद वाणी सबद - 53
ओ३म् गुरु हीरा बिणजै ले हम लेहूं। गुरु ने दोष न देणा। पवणा पाणी जमी मेहूं, भार अठारै परबत रेहूं। सूरज जोती परे परे रै, एती गुरु के शरणे। केती पवली अरु जल बिम्बा। नवसे नदी नवासी नाला, सायर एती जरणा। क्रोड़ निनाणवे राजा भोगी, गुरु के आखर कारण जोगी। माया राणी राज तजीलो गुरु भेटीलो जोग सझीलो। पिंडा देख न झुरणा। कर कृषाणी बैफायत सेंठों, जोय-जोय जीव पिण्डे निसरणा। आदै पहलू घड़ी अढाई, स्वर्गे पहुंता हिरणी हिरणा। सुरां पुना तेतीसां मेलो, जे जीवंता मरणों। के के जीव कुजीव, कुधात कलोतर वाणी। वादिलो हंकारीलों बैभार घणाले मरणों। मनषारे तै सूतै सोयो खूलै खोयो, जड़ पाहन संसार बिगोयो। निरफल खोड़ भिरांति भूला, आस किसी जा मरणो। बैसाई अंध पड़यो गल फंद, लियो गलबंध गुरु बरजंते। हेलै स्याम सुन्दर के टोड़े, पारस दुस्तर तरणों। निश्चै छेह पड़ेलो पालो, गोवल वास जु करणों। गोवल वास कमायले जिवड़ा, सो स्वर्गापुर लहणा ॥53॥
सबद वाणी सबद - 54
ओ३म् अरुण बिवांणे रे रबी भाणे। देव दिवांणे, विष्णु पुराणे। बिंबा बाणे सूर उगाणे। विष्णु बिवाणे कृष्ण पुराणे। कांय झंख्यो तें आल प्राणी। सुर नर तणी सबेरूं। इंडो फूटो बेला बरती। ताछे हुई बेर अबेरूं। मेरे परे सो जोयण बिबां लोयण। पुरुष भलो निज बाणी। बांकी म्हारी एका जोती, मनसा सास बिवाणी। को आचारी आचारे लेणा। संजमे शीले सहज पती ना। तिहिं आचारी नै चीन्हत कौण, जाकी सहजे चूके आवागवण ॥54॥
सबद वाणी सबद - 55
ओ३म् रणघटिये के खोज फिरन्ता, सुण सेवन्ता खोज हस्ती को पायो। लूंकडिये को खोज फिरन्ता, सुण सेवन्ता खोज सुरह को पायो। मोडिये के गूंढ खणता, सुण सेवन्ता, लाधो थान सुथानों। रांघड़िये को घाट घड़न्ता सुण सेवन्ता, कंचन सोनो डायों। हस्ती चढता गेंवर गुड़न्ता सुणहीं सुणहां भुंकत काया ॥55॥
सबद वाणी सबद - 56
ओ३म् कुपात्र कूं दान जु दियो, जाणे रैन अंधेरी चोर जु लियों। चोर जु लेकर भाकर चढियो। कह जिवड़ा तैं कैनें दियों। दान सुपाते बीज सुखेते। अमृत फूल फलीजै। काया कसोटी मन जो गूंटो जरणा ढाकण दीजे। थोड़े माहिं थोड़ेरों दीजै, होते नाह न कीजै। जोय जोय नाम विष्णु के बीजै, अनन्त गुणा लिख लीजै ॥56॥
सबद वाणी सबद - 57
ओ३म् अति बल दानों, सब स्नानों। गऊ कोट जे तीरथ दानों। बहुत करै आचारूं। तेपण जोय जोय पार न पायों, भाग प्रापति सारूं। घट ऊंधै बरसत बहु मेहा, नीर थयो पण ठालूं। को होयसी राजा दुर्योधन सो, विष्णु सभा मह लाणो। तिण ही तो जोय जोय पार न पायों। अध बिच रहियों ठालूं। जपिया तपिया पोह बिन खपिया, खप खप गया इवाणी। तेऊ पार पहुंता नाहीं। ताकी धोती रही असमानी ॥57॥
सबद वाणी सबद - 58
ओ३म् तउवा माण दुर्योधन माण्या, अवर भी माणत माणूं। तउवा दान जू कृष्णी माया, और भी फूलत दानों। तउवा जाण जु सहस्र झूझ्या, और भी झूझत जाणों। तउवा बाण जो सीता कारण लक्ष्मण खेंच्या, और भी खैचत बाणौं। जती तपी तक पीर ऋषिश्वर, तोल रह्या शैतानों। तिण किण खैच न सके शंभू तणी कमाणों। तेऊ पार पहुंता नाहीं, ते कीयो आपो भांणों। तेऊ पार पहुंता नाहीं, ताकी धोती रही अस्माणो। बारां काजै हरकत आई, अध बिच मांड्यो थांणों। नारसिंह नर नराज नर वो, सुराज सुर वो। नरां नरपति, सुरां सुरपति। ज्ञान न रिंदो, बहु गुण चिन्दों। पहलू प्रह्लादा आप पतलियो। दूजा काजे काम बिटलियो। खेत मुक्त ले पंच करोड़ी। सो प्रह्लादा गुरु की बाचा बहियों। ताका शिखर अपारूं। ताको तो बैकुण्ठे वासो। रतन काया दे सोंप्या छलत भण्डारूं। तेऊ तो उरबारै थाणों। अई अमाणो, तत समाणो, बहु प्रमाणो, पार पहुंचण हारा। लंका के नर नर शूर संग्रामें घणा बिरांमे। काले काने भला तिकंट। पहले झूझ्या बाबर झंट। पड़ै ताल समंदा पारी, तेऊ रहीया लंक दवारी। खेत मुक्त ले सात करोड़ी, परशुराम के हुकम जे मूवा। सेतो कृष्ण पियारा। ताको तो बैकुण्ठे बासो। रतन काया दे सौंप्या छलत भण्डारूं। तेऊ तो उरबारे थाणों, अई अमाणों, पार पहुंचण हारा। काफर खानों, बुद्धि भराड़ो। खेत मुक्त ले नव करोड़ी राव युधिष्ठिर। से तो कृष्ण पियारा। ताको तो बैकुण्ठे बासो। रतन काया दे सौंप्या छलत भंडारूं। तेऊ तो उरबारे थांणो, अई अमाणो, बहु प्रमाणो पार पहुंचन हारा। बारा काजै हरकत आई। तातै बहुत भई कसवारू ॥58॥
सबद वाणी सबद - 59
ओ३म् पढ कागल वेदूं शास्त्र शब्दूं, भूला भूले झंख्या आलूं। अहनिश आव घटंती जावे, तेरा सांस सबी कसवारूं। कड्या चन्दा कड्या सूरूं, कड्या काल बजावत तूरूं। उर्द्धक चन्दा निरधक सूरूं, सुन घट काल बजावत तूरूं। ताछे बहुत भई कसवारूं। रक्तस बिन्दू परहस निन्दू आप सहै तेपण बूझै नहीं गवारूं ॥59॥
सबद वाणी सबद - 60
ओ३म् एक दुःख लक्ष्मण बंधु हइयों। एक दुःख बूढे घर तरणी अईयों। एक दुःख बालक की माँ मुईयों। एक दुःख ओछै को जमवारूं। एक दुःख तूठे सें व्यवहारूं। तेरे लक्षणे अन्त न पारूं। सहै न शक्ति भारूं। कै तें परशुराम का धनुष जे पईयों। कै तें दाव कुदाव न जाण्यो भईयों। लक्षमण बाण जे दहशिर हईयों। ऐतो झूझ हमें नंही जाणों। जे कोई जाणे हमारा नाऊं। तो लक्ष्मण ले बैकुण्ठे जाऊं। तो बिन ऊभा पह परधानों। तो बिन सूना त्रिभुवन थानों। कहा हुवो जे लंका लईयों। कहा हुवोजे रावण हईयों। कहा हुओ जे सीता अईयों। कहा करूं गुणवन्तों भईयों। खल के साटै हीरा गईयों ॥60॥
सबद वाणी सबद - 61
ओ३म् कै तैं कारण किरिया चुक्यो। कै तैं सूरज सामो थूक्यो। कै तैं ऊभे कांसा मांज्या। कै नैं छान तिणूका खैच्या। कै तैं ब्राह्मण नवत बहोड्या। कै तैं आवा को रंभ चोरया । कै तैं बाड़ी का बन फल तोड्या। कै तैं जोगी का खप्पर फोड्या। कै तैं ब्राह्मण का तागा तोड्या। कै तैं बेर विरोध धन लोड्या। कै तैं सुवा गाय का बच्छ बिछोड्या। कै तैं चरती पिवती गऊ बिडारी। कै तैं हरि पराई नारी। कै तैं सगा सहोदर मारया। कै तैं तिरिया शिर खडंग उभारया। कै तैं फिरते दांतण कियो। कै तैं रण में जाय दो दियो। कै तैं बाट कूट धन लियो। किसे सरापे लक्ष्मण हइयूं। ॥61॥
सबद वाणी सबद - 62
ओ३म् ना मैं कारण किरिया चुक्यो। ना मैं सूरज साम्हे थूक्यो। ना मैं ऊभै कांसा मांज्या। ना मैं छान तिणुका खैच्या। ना मैं ब्राह्मण नवत बहोड्या। ना मैं आवा को रंभ चोरया। ना मैं बाड़ी का बन फल तोड्या। ना मैं जोगी का खप्पर फोड्या। ना मैं ब्राह्मण का तागा तोड्या। ना मैं बैर विरोध धन लोड्या। ना मैं सुवा गाय का बच्छ बिछोड्या। ना मैं चरती पिवती गऊ बिडारी। ना मैं हरी पराई नारी। ना मैं सगा सहोदर मारया। ना मैं तिरिया शिर खडंग उभारया। ना मैं फिरते दांतण कियो। ना मैं रण में जाय दो दीयो। ना मैं बाट कूट धन लियौ। एक जू औगुण रामे कीयो। अण होतो मिरगो मारण गईयो। आज्ञा लोप जू तुम्हारी हुईयो। दूजो ओगुण रामे कीयो। एको दोष अदोषो दीयो। बन खण्ड में जद साथर सोईयो। जद को दोष तदो को होइयो ॥62॥
सबद वाणी सबद - 63
ओ३म् आतर पातर राही रूक्मन, मेल्हां मन्दिर भोयो। गढ़ सोवना ते पण मेल्हा रहा छड़ासी जोयो। रात पड़ता पाला भी जाग्या, दिवस तपन्ता सूरूं। ऊन्हां ठाडा पवना भी जाग्या, घन बरसंता नीरूं। दुनीतणा ओचाट भी जाग्या, के के नुगरा देता गाल गहीरूं। जिहिं तन ऊंना ओढण ओढा, तिहिं ओढता चीरूं। जां हाथे जप माली जपां, तहां जपंता हीरूं। बारा काजै पड़ो बिछोहो, संभल संभल झूरूं। राघो सीता हनवत पाखो, कौन बंधावत धीरूं। मागर मणियां काच कथीरूं, हीरस हीरा हीरूं। बिषा पटंतर पड़ता आया, पूरस पूरा पूरूं। जे रिण राहे सूर गहीजै, तो सूरस सूरा सूरूं। दुःखिया है जे सुखिया होयसी, करसैं राज गहीरूं। महा अंगीठी बिरखा ओल्हो, जेठ न ठण्डा नीरूं। पलंग न पोढण सेज न सोवण, कण्ठ रूलंता हीरूं। इतना मोह न मानै शम्भू, तहीं तहीं सुसीरूं। घोड़ा चोली बाल गुदाई, श्री राम का भाई। गुरु की बाचा बहियो। राघो सीता हनवत पाखो, दुःख सुख कासूं कहियो ॥63॥
सबद वाणी सबद - 64
ओ३म् मैं कर भूला मांड पिराणी। काचै कंध अगाजूं। काचा कंध गले गल जायसैं। बीखर जेला राजों। गड़बड़ गाजा कांय बिबाजा। कण बिन कूकस कांय लेणा। कांय बोलो मुख ताजों। भरमी बादि अति अहंकारी, लावत यारी। पशुवां पड़े भरान्ति। जीव बिणासै लाहै कारणै। लोभ सवारथ खायबा खाज अखाजों। जो अति काले ले जम काले तेपण खीणा। जिहिं का लंका गढ़ था राजों। बिन हस्ति पाखर बिन गज गुडियों। बिन ढोला डूमा लाकडियो। जाके परसण बाजा बाजै। सो अपरं पर काय न जंपो हिन्दू मुसलमानों। डर डर जीव के काजै। रावां रंका राजा रावां। रावत राजा। खाना खोजां। मीरां मुलकां घंघ फकीरां। घंघा गुरवां, सुर नर देवां। तिमर जू लंगा, आयसां जोयसां। साह पुरोहितां। मिश्र ही व्यासां। रूखां बिरखां। आव घटंती। अतरा माहे कुंण बिशेषो। मरणत एको माघों। पशु मुकेरूं। लहै न फेरूं। कहै जमेरूं। सब जग केरूं। साचै से हर करै घणेरूं। रिण छाणै ज्यूं बिखरजैला। तातैं मेरूं न तेरूं। बिसर गया ते माघूं। रक्तुं नातुं सेतुं धातुं। कुमलावे ज्यूं सागूं। जीवर पिण्ड बिछोवा होयसी। तादिन दाम दुगाणी। आडन पैंको रति बिसोवो सीझै नांहिं। ओपिण्ड काम न काजूं। आवत काया ले आये थो, जातै सूको जागो। आवत खिण एक लाई थी, पर जाते खिणी न लागो। भाग परापति करमा रेखां। दरगै जबला जबला माघों। बिरखै पान झड़े झड़ जायला। ते पण तई न लागूं। सेतूं दगधूं कवलज कलियों। कुमलावै ज्यूं शागूं। ऋतु बसंती आई और भलेरा शांगूं। भूला तेण गयारे प्राणी, तिहिं का खोज न माघूं। विष्णु विष्णु भण लई न साई। सुर नर ब्रह्मा को न गाई। तातें जबर बिन डसी रे भाई। बास बसंतै कीवी न कमाई। जबर तणा जमदूत दहेला, तातै तेरी कहा न बसाई ॥64॥
सबद वाणी सबद - 65
ओ३म् तउवा जाग जू गारेख जागा, निरह निरजंन निरह निरालम्ब। जुग छत्तीसों एकै आसन बठा बरत्या। और भी अवधू जागत जागूं। तउवा त्यागज बह्मा त्यागा। और भी त्यागत त्यागूं। तउवा भाग जो ईश्वर मस्तक, और भी मस्तक भागूं। तउवा सीर जो ईश्वर गौरी, और भी कहियत सीरूं। तउवा बीर जो राम लक्ष्मण, और भी कहियत बीरूं। तउवा पाग जो दशशिर बाधीं, और भी बाधंत पागूं। तउवा लाज जो सीता लाजी, और भी लाजत लाजूं। तउवा बाजा राम बजाया और भी बजावत बाजूं। तउवा पाज जो सीता कारण लक्ष्मण बाधीं, और भी बाधतं पाजूं। तउवा काज जो हनमुत सारा, और भी सारत काजूं। तउवा खाग जो कुम्भकरण महरावण खाज्या, और भी खावत खागूं। तउवा राज दुर्योधन माण्या, और भी माणत राजूं। तउवा रागज कन्हड़ बाणी, और भी कहिये रागूं। तउवा माघ तुरगंम तेजी, टटू तणा भी माघूं। तउवा बागज हसां टोली, बगुला टोली भी बागूं। तउवा नाग उद्यावल कहिये, गरुड़ सीया भी नागूं। तउवा शागज नागर बेली, कूकर बगरा भी शागूं। जां जां शतानी करै उफारूं। तां तां महन्त ज फलियों। जुरा जम राक्षस जुरा जुरिन्द्र। कशं केशी चडंरूं। मधु कीचक हिरणाक्ष हिरणाकुस, चक्रधर बलदेऊं पावत बासदेवों। मण्डलीक कांय न जोयबा। इहं धर ऊपर रती न रहिबा राजूं ॥65॥
सबद वाणी सबद - 66
ओ३म् उमाज गुमाज पंज गंज यारी। रहिया कुपहीया शैतान की यारी। शैतान लो भल शैतान लो। शैतान बहो जुग छायों। शैतान की कुबध्यान खेती। ज्यूं काल मध्ये कुचीलूं। बेराही बे किरियावन्त। कुमती दोरे जायसैं। शैतान लोड़त रलियों। जां जां शैतान करै अफारूं। तां तां महंत न फलियों। नील मध्ये कुचील करबा। साध संगिणी थूलूं। पोहप मध्ये परमला जोति। यूं स्वर्ग मध्ये लीलूं। संसार में उपकार ऐसा। ज्यूं घण बरसता नीरूं। संसार में उपकार ऐसां ज्यूं रूही मध्ये खीरूं ॥66॥
सबद वाणी सबद - 67
ओ३म् श्री गढ़ आल मोत पुर पाटण भुय नागोरी। म्हे ऊंडे नीरे अवतार लियो। अठगी ठंगण, अदगी दागण अगजा गंजण। ऊनथ नाथन, अनू नवावनं काहि को खैकाल कियों। काहीं सुरग मुरादे देसां। काही दोरे दीयूं। होम करीलो दिन ठावीलो, सहस रचीलो। छापर नीबी दूणपुरूं। गांम सुन्दरियो, छीलै बलदीयो। छन्दे मन्दे बालदीयो। अजम्हे होता नागोर वाड़े, रैण थंमै गढ़ गागरणो। कुं कुं कंचन, सोरठ, मरहठ। तिलंग दीप गढ़ गागरणो। गढ़ दिल्ली कंचन अर दूणायर। फिर फिर दुनिया परखे लियों। थटै भवणिया अरु गुजरात। आछो जाई सवा लाख, मालवे परवत मांडू मांही ज्ञान कथं। खुरासाण, गढ़ लंका भीतर गूगल खेऊ पैरठयों। इडर कोट, उजैणी नगरी। काहिदा सिंधप्री विश्राम लीयों। कांय रे सायरा गाजे बाजे, घुरै घर हरै करै इवाणी आप बलूं। किहिं गुण सायरा मीठा होता। किंहिं अवगुण हुओ खार खरूं। जद बासग नेतो मेर मथाणी। समंद बिरोल्यो डोयरणं। रेणायर डोहण पाणी पोहण। असुरां बेधी करण छलूं। दह शिर ने जद वाचा दीन्हीं। तद म्हे मेल्हीं अनन्त छलूं। दश शिर का दश मस्तक छेदा। ताणूं बाणूं लहूं कुलू। सोखा बाणूं एक बखाणूं। जाका बहु परवाणूं। निश्चय राखी तास बलें। राय विष्णु से बाद न कीजै। कांय बधारों दैत्य कुलू। म्हे पण म्हेई थेपण थेई। सा पुरुषां की लच्छ कुलूं। गाजे गुड़कै से क्यूं बीहै। जे झल जांकी सहस फणूं। मेरे मांय न बाप न बहण न भाई। साख न सैण न लोक जणो। बैकुण्ठे विश्वास बिलम्बण। पार गिराये मात खिणूं। विष्णु विष्णु तू भण रे प्राणी। विष्णु भणन्ता अनन्त गुणूं। सहसे नावै, सहसे ठावें। सहसे गावें, गाजे बाजे, हीरे नीरे। गगन गहीरे। चवदा भवणे। तिहूं तृलोके, जम्बू दीपे। सप्त पाताले। अई अमाणो, तत्त्व समाणो, गुरु फुरमाणें। बहु परवाणों। अईया उईयां निरजत सिरजत। नान्हीं मोटी जीया जूंणी। एती सास फुरन्ते सारूं। कृष्णी माया घण बरसंता। म्हे अगिणि गिणूं फुहांरूं। कुण जाणे म्हे देव कुदेवो। कुण जाणे म्हे अलख अभेवो। कुण जाणै म्हे सुर नर देवों। कुण जाणे म्हारा पहला भेवू। कुण जाणै म्हे ज्ञानी के ध्यानी। कुण जाण म्हे केवल ज्ञानी। कुण जाणे म्हे ब्रह्मज्ञानी। कुण जाणे म्हे ब्रह्मचारी। कुण जाणे म्हे अल्प अहारी। कुण जाणे म्हे पुरुष के नारी। कुण जाणे म्हे बाद विबादी। कुण जाणे म्हे लुब्ध सवादी। कुण जाणै ग्हे जोगी के भोगी। कुण जाणे म्ह आप संयोगी। कुण जाणे म्हे भावत भोगी। कुण जाणै म्हें लील पती। कुण जाणे म्हे सूम के दाता। कुण जाणे म्हे सती कुसती। आप ही सूमर आप ही दाता। आप कुसती आपै सती। नव दाणं निरवंश गमाया। कैरव किया फती फती। राम रूप कर राक्षस हडिया। बाण के आगे बनचर जुडियां तद म्हे राखी कमल पती। दया रूप म्हे आप बखाणां। संहार रूप म्हे आप हती। सोलह सहस्र नवरंग गोपी। भोलम भालम, टोलम टालम, खोलम छालम। सहजे राखी लो म्हे निश्चय कन्हड़ बालो आप जती। छोलबीया म्हे तपी तपेश्वर। छोलब किया फती फती। राखण मतां तो पड़दे राखां। ज्यू दाहे पान बणास पती ॥67॥
सबद वाणी सबद - 68
ओ३म् बै कंवराई अनन्त बधाई। वै कंवराई स्वर्ग बधाई। यह कंवराई खेह रलाई। दुनिया रोलै कंवर किसो। कण बिन कूकस रस बिन बाकस। बिन किरिया परिवार किसो। अरशृं गरयूं साहण थाटूं। धूवे का लहलोर जिसो। सो सारंगधर जप रे प्राणी। जिहिं जपिये हुवै धर्म इसो। चलन चलंतै, बास बसंतै, जीव जीवंतै। काया नवंतै, सास फुरंतै। कीवी न कमाई तातैं जबर बिन डसी रे भाई। सुर नर ब्रह्मा कोऊ न गाई। माय न बाप न बहण न भाई। इंत न मिंत न लोक जणों। जबर तणा जमदूत दहैला, लेखो लेसी एक जणों ॥68॥
सबद वाणी सबद - 69
ओ३म् जबरारे तैं जग डांडीलो, देह न जीती जाणौ। माया जाले ले जम काले। लेणा कोण समाणों। काचे पिण्डे किसी बड़ाई। भोले भूल अयाणौ। म्हां देखतां दवे दाणूं। सुर नर खीणा, बीच गया बे राणो। कुभंकरण महरावण होता। अबली जोध अयाणों। काटे लकां गढ विषमा होता, कांयदा बस गया रावण राणो। नो ग्रह रावण पाए बन्ध्या, तिस बीह सुर नर शकं भयाणो। ले जम काले अति बुधवंतो, सीता काज लुभाणों। भरमी बादी अति अहकांरी, करता गरब गमाणो। तजे तो जम काले खीणां, थिर न लार्थो थाणों। काचे पिण्ड अकाज अफारूं। किसो प्राणी माणो। साबण लाख मजीठी बिगता, थोथा बाजर घाणों। दुनिया राचे गाजे बाजे, तामं कैणू न दाणूं। दुनिया के रगं सब कोई राचै, दीन रचै सो जाणो। लोही मासं विकारो होयसी, मूर्ख फिरै अयाणों। मागर मणियां काच कथीर न राचा, कडू दुनी डफाणों। चलन चलन्तै जीव जीवन्तै। काया नवन्तै, सास फरुन्तै। कांय रे प्राणी विष्णु न जंप्यो, कीयो कांधे को ताणों। तिहिं ऊपर आवला जबर तणा दल, तास किसो सहनाणों। ताकै शीश न आढेण, पाय न पहरण। नै वा झलू झयाणों। धणकन बाण न टोप न अगां। टाटर चगु ल चयाणों। साल सचुगीं घृत सुबासो, पीवण न ठडां पाणी। सेज न सोवण, पलगं न पोढण। छात न मैडी माणों। न वां दइया, न वां मइया। नागड़ दूत भयाणों। काचा तौड़ नीकूचा भाषै, अघट घटै मल माणों। धरती अरू आसमान अगोचर जाते जीव न देही जांणों। आवत जावत दीसै नाहीं। साचर जाय अयाणों। जबर तणा जमदूत दहलौ, मल बैसेला माणों। तातै कलियर कागा रोलो सूना रह्या अयां। आयसां जोय सां, भणतां, गुणतां। वार महूर्ता पोथा थोथा। पुस्तक पढिया वेद पुराणो। भतू प्रेती कांय जपीजै। यह पाखण्ड परवाणो। कान्ह दिशावर जे कर चालो। रतन काया ले पार पंहुचो, रहसी आवा जाणों। ताह परे रै पार गिरायै, तत के निश्चल थाणों। सो अपरं पर कांय न जंपो। तत खिण लहो इमाणों। भल मूल सीचों रे प्राणी। ज्यू तरवर मेलत डालूं। जड्या मूल न सींच्यो। तो जामण मरण बिगावी। अहनिश करणी थिर न रहिबा। न बंच्यो जम कालूं। कोई कोई भल मूल सीचींलो। भल तत्त्व बुझीलो। जा जीवन की विथ जाणी। जीवतड़ा कछु लाहो होयसी। मां न आवत हाणीं ॥69॥
सबद वाणी सबद - 70
ओ३म् हक हलालूँ हक साच कृष्णों। सुकृत अहल्यो न जाई। भल बाहीलो भल बीजीलो। पवणा बाड़ बलाई। जीव कै काजै खड़ो जै खेती। तामे लो रखवालो रे भाई। दैतानी शैतानी फिरैला। तेरी मत मोरा चर जाई। उन मुन मनवां जीव जतन कर। मन राखीलो ठाई। जीव कै काजै खड़ो जे खेती। बाय दबाय न जाई। न तहां हिरणी न तहां हिरणा। न चीन्हों हरि आई। न तहां मोरा न तहां मोरी। न ऊन्दर चर जाई। कोई गुरु कर ज्ञानी तोड़त मोहा। तेरो मन रखवालो रे भाई। जो आराध्यो राव युधिष्ठिर। सो आराधो रे भाई ॥70॥
सबद वाणी सबद - 71
ओ३म् धवणा धूजै पाहण पूजे। बे फरमाई खुदाई। गुरु चेलै के पाए लागै। देखो लोग अन्याई। काठी कण जो रूपां रैहण। कापड़ माह छिपाई। नीचा पड़ पड़ तानै धोकै, धीरा रे हरि आई। ब्राह्मण नाऊं लादण रूड़ा। बूता नाऊं कूत्ता। वै अपहां नै पोह बतावै। बैर जगावैं सूता। भूत प्रेती जाखा खांणी। यह पाखण्ड पर वाणो। बल बल कूकस कांय दलीजै। जामै कणु न दाणूं। तेल लियो खल चौपै जोगी। खल पण सूंघी बिकाणो। कालर बीज न बीज प्राणी। थलशिर न कर निवांणो। नीर गये छीलर कांय सोधो। रीता रह्या इवाणो। भवंता ते फिरंता। फिरंता ते भवंता। मड़े मसाणै, तड़े तड़ंगे। पड़े पखाणे। ह्वांतो सिद्ध न काई। निज पोह खोज पिराणी। जे नर दावो छोड्यो मेर चुकाई। राह तेतीसों की जांणी ॥71॥
सबद वाणी सबद - 72
ओ३म् वेद कुराण कुमाया जालूं। भूला जीव कुजीव कुजाणी। बासन्दर नहीं नख हीरूं। धर्म पुरुष सिर जीवै पुरूं। कलि का माया जाल फिटा कर प्राणी। गुरु की कलम कुराण पिछांणी। दीन गुमान करेलो ठाली। ज्यूं कण घातै घुण हाणी। साच सिदक शैतान चुकावो। ज्यूं तिस चुकावै पांणी। मैं नर पुरो सरबिण जो हीरा। लेसी जाकै हृदय लोयण। अन्धा रह्या इवांणी। निरख लहो नर निरहारी। जिन चोखण्ड भीतर खेल पसारी। जंपो रे जिण जंपे लाभै। रतन काया ए कहांणी। काहीं मारूं, कांहीं तारूं। किरिया बिहूंणा परहथ सारूं। शील दहूं उबारूं उन्हें एकल एह कहांणी। केवल ज्ञानी थल शिर आयो। परगट खेल पसारी। करोड तेतीसों पोह रचावण हारी। ज्यों छक आई सारी ॥72॥
सबद वाणी सबद - 73
ओ३म् हरी कंकहड़ी मंडप मैड़ी, जहां हमारा बासा। चार चक नव दीप थरहरै, जो आपो परकासूं। गुणियां म्हारा सुगणा चेला, म्हे सुगणा का दायूं। सुगणा होय से स्वर्गे जासै, नुगरा रहा निरासूं। जाका थान सुहाया घर बैकुण्ठे, जाय संदेसो लायो। अमियां ठमियां अमृत भोजन, मनसा पालंग सेज निहाल बिछायों। जागो जोवो जोत न खोवो, छल जासी संसारूं। भणी न भणबा, सुणी न सुणबा, कही न कहबा, खड़ी न खड़बा। रे भल कृषाणी ताके करण न घातो हेलो। कलि काल जुग बर्ते जैलो, तातै नाहीं सुरां सूं मेलो ॥73॥
सबद वाणी सबद - 74
ओ३म् कड़वा मीठा भोजन भखले, भखकर देखत खीरूं। धर आखरड़ी साथर सोवण ओढ़ण ऊना चीरूं। सहजे सोवण पोह का जागण, जे मन रहिबा थीरूं। स्वर्गे पहेली सांभल जिवड़ा पोह उपरबा तीरूं ॥74॥
सबद वाणी सबद - 75
ओ३म् जोगी रे तू जुगत पिछांणी। काजी रे तू कलम कुराणी। गऊ विणासो काहे तानी। राम रजा क्यूं दीन्हीं दानी। कान्ह चराई रनबे बानी। निरगुण रूप हमें पतियानी। थलं सिर रह्यो अगोचर बानी, ध्याय रे मुंडिया पर दानी। फीटा रे अण होता तानी, अलख लेखो लेसी जानी ॥75॥
सबद वाणी सबद - 76
ओ३म् तन मन धोइये, संजम होइये, हरष न खोइये। ज्यूं ज्यूं दुनिया करै खुवारी त्यूं त्यूं किरिया पूरी। मुग्धा सेती यूं टल चालो । ज्यूं खड़कै पात धनूरी ॥76॥
सबद वाणी सबद - 77
ओ३म् भूला लो भल भूला लो। भूला भूल न भूलूं। जिहिं ठूंठडिये पान न होता। ते क्यूं चाहत फूलूं। को को कपूर घूंटी लो। बिन घूंटी नहीं जांणी। सतगुरु होयबा सहजे चीन्हबा। जाचंध आल बखाणी। ओछी किरिया आवै फिरियां। भ्रांती स्वर्ग न जाई। अन्त निरन्जन लेखो लेसी। पर चिन्है नहीं लोकाई। कण बिन कूकस रस बिन बाकस। बिन किरिया परिवारूं। हरि बिन देह रै जाण न पावै। अम्बाराय दवारूं ॥77॥
सबद वाणी सबद - 78
ओ३म् नवै पोल नवे दरवाजा। अहूंठ कोड़रूं राय जड़ी। कांयरे सींचो बनमाली। इंहिं बाड़ी तो भेल पड़सी। सुवचन बोल सदा सुहलाली। नाम विष्णु को हरे सुणो। घण तण गड़बड़ कायों बायों। निज मारग तो बिरला कांयो। निज पोह पाखो पार असीपर। जाण मगाह मैं गायों गुणों। श्री राम में मति थोड़ी। जोय जोय कण बिन कूकस कायों लेणों ॥78॥
सबद वाणी सबद - 79
ओ३म् बारा पोल नवै दरसा जी। राय अथर गढ थीरूं। इस गढ कोई थिर न रहिबा। निश्चय चाल गया गुरु पीरूं ॥79॥
सबद वाणी सबद - 80
ओ३म् जे म्हां सूता रैन बिहावै। बरतै बिम्बा बारूं। चन्द भी लाजै सूर भी लाजै, लाजै धर गैणारूं। पवणा पांणी ये पण लाजै, लाजै बणी अठारा भारूं। सप्त पताल फुणींदा लाजै, लाजै सागर खारूं। जम्बू दीप का लोईया लाजै, लाजै धवली धारूं। सिद्ध अरु साधक मुनि जन लाजै, लाजै सिरजंण हारूं। सत्तर लाख असी पर जपां, भले न आवे तारूं ॥80॥
सबद वाणी सबद - 81
ओ३म् भल पाखण्डी पाखण्ड मंडा। पहला पाप पराछत खंडा। जा पाखण्डी कै नादे वेदे शीले शब्दे बाजत पौण। ता पाखण्डी नै चीन्हत कौण। जाकी सहजै चूकै आवागौण ॥81॥
सबद वाणी सबद - 82
ओ३म् अलख अलख तू अलख न लखना। तेरा अनन्त इलोलूं। कौन सी तेरी करणी पूजै। कौन सै तिहिं रूप सतूलूं ॥82॥
सबद वाणी सबद - 83
ओ३म् जो नर घोड़े चढै पाग न बांधे ताकी करणी कौन न विचारूं। शुचियारा होयसी आय मिलसी। करड़ा दो जग खारूं। जीवतड़ै को रिजक न मेटूं, मूवा परहथ सारूं। हाथ न धौवे पग न पखालै, नाहर सिंह नर काजूं। जुग अनन्त अनन्त बरत्या म्हे सून मण्डल का राजूं ॥83॥
सबद वाणी सबद - 84
ओ३म् मडूं मडांयो मन न मडांयो, माहे अब खल दिल लोभी। अन्दर दया नहीं सुर काने, निदं राहडै कसोभी। गुरु गत छट्टी टोट पडलै, उनकी आवा एक पख सातो वे करणी हूंता खूंधा। असी सहस नव लाख भवला कूभीं दौरै ऊँधा ॥84॥
सबद वाणी सबद - 85
ओ३म् भोम भली कृषाण भी भला, खेवट करो कमाई। गुरु प्रसाद काया गढ खोजो, दिल भीतर चोर न जाई। थलिये आय सतगुरु परकाश्यो, जोलै पड़ी लोकाई। एक खिण मैं तीन भवन म्हे पोखां, जीवा जूण सवाई। करण समो दातार न हुवो, जिन कंचन बाहु उठाई। सोई कवीसा कवल नबेड़ी, सुरह सुबच्छ दुहाई। मेर समो कोई केर न देख्यो, सायर जिसी तलाई। लंक सरीखो कोट न देख्यो, समंद सरीखी खाई दशरथ सो कोई पिता न देख्यो, देवल देसी माई। सीत सरीखी तिरिया न देखी, गरब न करियो कांई। हनवत सो कोई पायक न देख्यो भीम जैसी सबलाई। रावण सो कोई राव न देख्यो, जिन चोहचक आण फिराई। एक तिरिया के राहा बेधी, लंका फेर बसाई। संखा मोहरा सेतम सेतूं ता क्यूं बिलगै काई। ब्राह्मण था तें वेदे भूला, काजी कलम गुमाई। जोग बिहूणा जोगी भूला, मुंडिया अकल न काई। इहिं कलयुग में दोय जन भूला, एक पिता एक माई। बाप जाणे मेरे हलियो टोरै, कोहर सीचण जाई। माय जाणै मेरे बहुटल आवै, बाजै बिरद बधाई। म्हे शंभू का फरमाया आया, बैठा तखत रचाई। दोय भुज डंडे परबत तोलां, फेरां आपण राई। एक पलक में सर्व सन्तोषा जीया जूण सवाई। जुगां जुगां को जोगी आयो, बैठो आसन धारी। हाली पूछे पाली पूछे, यह कलि पूछण हारी। थली फिरन्तो खिलेरी पूछें, मेरी गुमाई छाली। बांण चहोड़ पारधियो पूछे, किहिं अवगुण चूकै चैट हमारी रहो रे मुरखा मुग्ध गवारां, करो मजूरी पेट भराई। है है जायो जीव न घाई। मेड़ी बैठो राजेन्द्र पूछे, स्वामी जी कती एक आयु हमारी। चाकर पूछै ठाकर पूछे, और पूछे कीर कहारी। सोक दुहागण तेपण पूछे, ले ले हाथ सुपारी। बांझ तिरिया बहुतेरी पूछे, किसी प्रापती म्हारी। त्रेतायुग में हीरा बिणज्या, द्वापर गऊ चराई। वृन्दावन में बंसी बजाई, कलियुग चारी छाली। नव खेड़ी म्हे आगै खेड़ी दशवं कालंके की बारी। उत्तम देश पसारो मांड्यो, रमण बैठो जुवारी। एक खंड बैठा नव खंड जीता, को ऐसो लहो जुवारी ॥85॥
सबद वाणी सबद - 86
ओ३म् जुग जागो जुग जाग पिरांणी, कांय जागतां सोवो। भल कै बीर बिगोवो होयसी। दुशमन कांय लकोवो। ले कूचीं दरबान बलावो, दिल ताला दिल खोवो। जंपो रे जिण जंप्यो जणियर, जपसी सो जिण हारी। लह लह दावं पडतां खेलो, सुर तेतीसां सारी। पवन बधांन काया गढ़ काची, नीर छलै ज्यूं पारी। पारी बिनसै नीर ढुलैलो, ओ पिडं काम न कारी। काची काया दृढ़ कर सीचो, ज्यूं माली सीचें बाड़ी। ले काया बासदंर होमो, ज्यूं ईधन की भारी। शील स्नाने संजमे चालो, पाणी दहे पखालो। गुरु के वचने निवं खिवं चालो, हाथ जपो जप माली। वस्तु पियारी खरचो क्यूं नाहीं किहिं गुण राखो टाली। खरचे लाहो राखे टोटो, बिवरस जोय निहाली। घर आगी इत गावेल वासो, कूड़ी आधोचारी। आज मूवा कल दूसर दिन है जो कुछ सरै तो सारी। पीछै कलियर कागा रोलो, रहसी कूक पकारी। ताण थकै क्यूं हारयो नाहीं। मूरखा अवसर जोलै हारी ॥86॥
सबद वाणी सबद - 87
ओ३म् जाका उमग्या समाधू तिहिं पंथ के बिरला लागूं। बीजा चाकर बीरूं, रण शंख धीरूं। कबही झूझत रायूं, पासै भाजत भायों। तातै नुगरा झूझ न कीयों ॥87॥
सबद वाणी सबद - 88
ओ३म् गोरख लो, गोपाल लो, लाल गवाल लो। लाल लीलंग देवों। नव खंड पृथ्वी परगटियो। कोई बिरला जाणत म्हारी आदमूल का भेवों ॥88॥
सबद वाणी सबद - 89
ओ३म् उरधक चन्दा, निर्द्धक सूरूं। नव लख तारा नेड़ा न दूरूं। नव लख चन्दा, नव लख सूरूं । नव लख धंधूकारूं। ताह परे रै तेपण होता, ताका करूं विचारू ॥89॥
सबद वाणी सबद - 90
ओ३म् चोईस चेड़ा कालंग केड़ा, अधिक कलावंत आयसैं। बै फेर आसन मुकर होय बैसैला, नुगरा थान रचायसैं। जाणत भूला महापापी, बहु दुनियां भोलायौं। दिल का कूड़ा कुडियारा, उपंग बात चलायसैं। गुरु गहणा जो लेवै नाहीं दश बंध घर बोसायसैं। आप थापी महा पापी दग्धी परलै जायसैं। सतगुरु कै बेड़े न चढ़े, गुरु स्वामी नै भायसैं। मन्त्र बेलु ऋध सिद्ध करसै, दे दे कार चलायौं। काठ का घोड़ा निरजीवता, सरजीव करायसैं। ताने दाल चरायसैं। अधर आसन मांड बैसैला, मूवा मड़ा हंसायसैं। जां जां पवन आसन पांणी आसन चंद आसन सूर आसन, गुरु आसन समराथले। कहै सतगुरु भूल मत जाइयो पड़ौला अभे दो जखै ॥90॥
सबद वाणी सबद - 91
ओ३म् छंदे मंदे बालक बुद्धे, कूड़े कपटे ऋध न सिद्धे। मेरे गुरु जो दीन्हीं शिक्षा, सर्व अलिंगण फेरी दीक्षा जाण अजाण बहिया जब जब, सर्व अलिंगण मेटे तब तब। ममता हस्ती बांध्या काल, काल पर काले परसत डाल। ध्यान न डोलै मन न टलै, अहनिश ब्रह्म ज्ञान उच्चरै। काया पत नगरी मन पत राजा, पंच आत्मा परिवारूं। है कोई आछै मही मण्डल शूरा, मन राय सूं झूझ रचायले। अथगा थगायले, अबसा बसायले। अनबे माघ पालले। सत सत भाषत गुरुरायों जरा मरण भो भागूं ॥91॥
सबद वाणी सबद - 92
ओ३म् काया कोट पवन कुट वाली कुकर्म कुलफ बनायो। माया जाल भरम का संकल, बहु जुग रहीया छायो। पढ वेद कुरांण कुमाया जालूं, दंत कथा जुग छायों। सिद्ध साधक को एक मतो, जिन जीवन मुक्त दृढायो। जुगां जुगां को जोगी आयो, सतगुरु सिद्ध बतायो। सहज स्नानी केवल ज्ञानी ब्रह्मज्ञानी, सुकृत अहल्यो न जाई। क्यूं क्यूं भणता क्यूं क्यूं सुणता, समझ बिना कुछ सिद्धि न पाई ॥92॥
सबद वाणी सबद - 93
ओ३म् आद शब्द अनाहद बाणी, चौदह भवन रह्या छल पाणी। जिहिं पाणी से इंड ऊपन्ना, उपन्ना ब्रह्मा इन्द्र मुरारी ॥93॥
सबद वाणी सबद - 94
ओ३म् सहस्र नाम सांई भल शंभु, म्हे उपना आदि मुरारी। जद मैं रह्यो निरारंभ होकर, उतपत्ति धंधु- कारी। ना मेरे मायन ना मेरै बापन, मैं अपनी काया आप संवारी। जुग छतीसों शुन्यहि बरत्या। सतयुग माहीं सिरजी सारी। ब्रह्मा इन्द्र सकल जग थरप्या दीन्हीं करामात केतीवारी। चंद सूर दोय साक्षी थरप्या, पवन पवनेश्वर पवन अधारी। तद म्हे रूप कीयो मैनावतियो, सत्यव्रत को ज्ञान उचारी। तद म्हे रूप रच्यो काम- ठियों, तेतीसों की क्रोड़ हंकारी। जद म्हे रूप धरयो वाराही। पृथिवी दाढ़ चढ़ाई सारी। नरसिंह रूप धर हिरण्य- कश्यप मारयो। प्रहलादो रहियो शरण हमारी। बावन होय बलिराज चितायो, तीन पैंड कीवी धर सारी। परशुराम हो क्षत्रियपन साध्यो, गर्भ न छूटो नारी । श्री राम सिर मुकुट बंधायो, सीता के अहंकारी। कन्हड़ होयकर बंसी बजाई, गऊ चराई, धरती छेदी, काली नाथ्यो, असुर मार किया क्षयकारी। बुद्ध रूप गयासुर मारयो, काफर मार किया बेगारी। पंथ चलायो, राह दिखायो, नौ बर विजय हुई हमारी। शेष जम्भराज आप अपरंपर, अवल दीन से कहियो। जाम्भा गोरख गुरु अपारा। काजी मुल्ला पढिया पंडित, निन्दा करै गंवारा। दो जख छोड़ भिस्त जे चाहो, तो कहिया करो हमारा। इन्द्र पुरी बैकुण्ठे बासो, तो पावो मोक्ष ही द्वारा ॥94॥
सबद वाणी सबद - 95
ओ३म् वाद विवाद फिटाकर प्राणी, छाड़ो मनहठ मन का भाणो। काही के मन भयो अंधेरो, काही सूर उगाणो। नुगरा के मन भयो अंधेरो, सुगरा सूर उगाणो। चरण भी रहीया लोयण झुरिया, पिंजर पड़यो पुराणो। बेटा बेटी बहनरु भाई सब से भयो अभाणो। तेल लियो खल चौपै जोगी, रीता रहियो घाणो। हंस उडाणो पंथ विलंब्यो, कीयो दूर पयाणो। आगै सुरपति लेखो मांगै, कह जीवड़ा क्या करण कमाणो। जिवड़ा नै पाछौ सूझन लागो, सुकृत नै पछताणो ॥95॥
सबद वाणी सबद - 96
ओ३म् सुण गुणवन्ता सुण बुध- वंता। मेरी उत्पति आद लुहारूं। भाठी अन्दर लोह तपीलो, तंतक सोना घड़ै कसारूं। मेरी मनसा अहरण, नाद हथोड़ा। शशीयर शूर तपीलो, पवन अधारी खालूं। जे थे गुरु का शब्द मानीलो, लंघिबा भव जल पारूं। आसन छोड़ सुखासन बैठो, जुग जुग जीवे जम्भ लुहारूं ॥96॥
सबद वाणी सबद - 97
ओ३म् विष्णु विष्णु तू भणरे प्राणी, जो मन मानै रे भाई। दिन का भूला रात न चेता, कांय पड़ा सूता। आस किसी मन थाई। तेरी कूड़ काची लगवाड़ घणो छै, कुशल किसी मन भाई। हिरदै नाम विष्णु को जंपो, हाथे करो टवाई। हरि पर हरि की आण न मानी, भूला भूल जपी महमाई। पाहण प्रीत फिटाकर प्राणी। गुरु बिन मुक्त न जाई। पांच करोड़ी ले प्रह्लाद उतरियो। जिन खरतर करी कमाई। सात करोड़ी ले राजा हरिश्चन्द्र उतरियो। तारादे रोहितास हरिश्चन्द्र हाटो हाट बिकाई। नव करोड़ी राव युधिष्ठिर ले उतरियो। धन धन कुन्ती माई। बारह करोड़ समाहन आयो। प्रह्लादा सूं कवलजू थाई। किसकी नारी बस्त पियारी। किसका बहनरू भाई। भूली दुनिया मर मर जावै। न चिन्हों सुरराई। पाहण नाऊं लोहा सक्ता। नुगरा चीन्हत काई ॥97॥
सबद वाणी सबद - 98
ओ३म् जिहिं गुरु कै खिणही ताऊं, खिणही सीऊं, खिणवी पवणा, खिणही पाणी, खिणहीं मेघ मंडाणो। कृष्ण करंता बार न होई, थल सिर नीर निवाणो। भूला प्राणी विष्णु जंपो रे, ज्यूं मोत टलै जिरवाणो। भीगा है पण भेद्या नाहीं। पाणी मांह पखाणो। जीवत मरो रे जीवत मरो। जिन जीवन की विध जांणी। जे कोई आवै हो हो करता। आप जै हुईये पांणी। जाकै बहुती नवणी। बहुती खवणी। बहुती क्रिया समाणी। जाकी तो निज निर्मल काया। जोय जोय देखो ले चढियो अस्मानी। यह मढ़ देवल मूल न जोयबा। निज कर जंपो पिराणी। अनन्त रूप जोवो अभ्यागत। जिहिं का खोज लहो सुरवाणी। सेतम सेतूं, जेरज जेरूं। इंडस इंडू। अइया लो उरध जे खेणी ॥98॥
सबद वाणी सबद - 99
ओ३म् साच सही म्हे कूड़ न कहबा नेड़ा था पण दूर न रहीबा। सदा सन्तोषी सत उपकरणा। म्हे तजिया मान भी मानु। बस कर पवणा, बस कर पाणी, बस कर हाट पटण दरवाजों। दशे दवारे ताला ज़डिया, जो ऐसा उसताजों। दशे दवारे तालाकूंची, भीतर पोल बणाई। जो आराध्यो राव युधिष्टिर, सो आराधो रे भाई। जिहिं गुरु के झूरे न झुरबा, खिरै न खिरणा। बंक त्रिबंके नाल पै नालै, नैणे नीर न झुरबा। बिन पुल बंध्या बाणो। तज्या अलिंगण तोड़ी माया, तन लोचन गुण बाणो। हालीलो भल पालीलो, सिध पालीलो, खेड़त सूना राणो ॥99॥
सबद वाणी सबद - 100
ओ३म् अर्थं गर्भू साहण थाटूं कूड़ा दीठो ना ठाटों। कूड़ी माया जाल न भूली रे राजेन्दर, अलगी रहीयो ओजूं की बाटों। नव लख दंताला बार करीलो, बार करे कर बंद करीलो। बंद करे कर दान करीलो, दान करे कर मन फूलीलो। तंत मंत बीर बैताल करीलो, खायबा खाज अखाजूं। निरह निरंजन नर निरहारी, तऊ न मिलवा, झंझा भाग अभागूं ॥100॥
सबद वाणी सबद - 101
ओ३म् नितही मावस नित संकरांति, नितही नवग्रह वैसे पांति। नितही गंग हिलोरे जाय, सतगुरु चीन्है सहजै न्हाय। निरमल पाणी निरमल घाट, निरमल धोबी पांड्यो पाट। जे यो धोबी जाणै धोय, घर में मैला वस्त्र रहे न कोय। एकमन एकचित साबण लावै पहरंतो गाहक अति सुख पावै। ऊंचे नीचे करै पसारा। नांही दूजै का संचारा। तिल में तेल पहुप में वास, पांच तत्त्व में लियो प्रकाश। बिजली कै चमकै आवै जाय। सहज शून्य में रहै समाय। नै यो गावै न यो गवावै, स्वर्गे जाते बार न लावै। सतगुरु ऐसा तत्त्व बतावै, जुग जुग जीवै बहुर न आव ॥101॥
सबद वाणी सबद - 102
ओ३म् विष्णु-विष्णु भण अजर जरीजै, धर्म हुवै पापां छूटीजै। हरि पर हरि को नाम जपीजै, हरियालो हरि आण हरूं। हरी नारायण देव नरूं। आशा सास निराश भईलो, पाईलो मोक्ष द्वार खिणं ॥102॥
सबद वाणी सबद - 103
ओ३म् देख्या अदेख्या सुणा असुणा, क्षमारूप तप कीजै। थोड़े माहिं थोड़े रो दीजै, होते नाहिं न कीजै। कृष्ण मया तिहुँ लोका साक्षी, अमृत फूल फलीजै। जोय-जोय नाम विष्णु के बीजै अनन्त गुणा लिख लीजै ॥103॥
सबद वाणी सबद - 104
ओ३म् कंचन दानु कुछ न मानूं। कापड दानु कुछ न मानूं। चापैड़ दानु, कुछ न मानूं। पाट पटम्बर दानु, कुछ न मानू। पचं लाख तरुगंम दानु, कुछ न मानूं। हस्ती दानु, कुछ न मानूं। तिरिया दानु, कुछ न मानूं। मानूं एक शचुल सनानूं ॥104॥
सबद वाणी सबद - 105
ओ३म् आप अलेख उपन्ना शंभू, निरह निरंजन धंधूकारूं। आपै आप हुआ अपर पर, नै तद चन्दा नै तद सूरूं। पवण न पाणी धरती आकाश न थीयों। ना तद मास न वर्ष न घड़ी न पहरूं, धूप न छाया ताव न सीयों। न त्रिलोक न तारा मण्डल, मैघ न माला वर्षा थीयों। न तद जोग नक्षत्र तिथि न बारसीयों। ना तद चवदश पूनो मावसीयों। न तद समंद न सागर न गिरि पर्वत, ना धौलागिरि मेर थीयों। ना तद हाट न बाट न कोट न कस्बा, बिणज न बाखर लाभ थीयों। यह छत धार बड़े सुलतानों, रावण राणा ये दिवाणा हिन्दू मुसलमानं। दोय पंथ नाहीं जुवा जुवा। ना तद काम न कर्षण जोग न दर्शन, तीर्थ बासी ये मस बासी। ना तद होता जपिया तपिया, ना खच्चर हीबर बाज थीयों। ना तद शूर न वीर न खड़ग न क्षत्री, रण संग्राम न झूझ न थीयों। ना तद सिंह न स्यावज मृग पंखेरूं। हंस न मोरा लै लै सूवो। रंग न रसना कापड़ चौपड़, गेहूँ चावल भोग थीयों। माय न बाप न बहण न भाई, ना तद होता पूत धीयों। सास न शब्दूं जीव न पिंडूं, ना तद होता पुरुष त्रियों। पाप न पुण्य न सती कुसती, ना तद होती मया न दया। आपै आप उपन्ना शभू, निरह निरंजन धंधूकारूं। आपो आप हुआ अपरंपर हे राजेन्द्र लेहु विचारूं ॥105॥
सबद वाणी सबद - 106
ओ३म् सुणरे काजी सुणरे मुल्ला, सुणियो लोग लुगाई। नर निरहारी एक लवाई, जिनयो राह फरमाई। जोर जबर करद जै छाड़ो तो कलमा नाम खुदाई। जिनकै साच सिदक इमान सलामत, जिन यो भिस्त उपाई ॥106॥
सबद वाणी सबद - 107
ओ३म् सहजे शीले सेज बिछायो, उनमुन रहा उदासूं। जुगै जुगन्तर, भवे भवन्तर, कहो कहाणी कासूं। रवि ऊगा जब उल्लू अन्धा, दुनियां भया उजासूं। सतगुरु मिलियो सतपथ बतायो, भ्रान्त चुकाई, सुगरा भयो विसवासूं। जां जां जाण्यों तहां प्रमाणो सहज समाणो, जिहिं के मन की पूगी आसूं। जहां गुरु न चीन्हों पंथ न पायो, तहां गल पड़ी परासूं ॥107॥
सबद वाणी सबद - 108
ओ३म् हालीलो भल पालीलो, सिध पालीलो, खेड़त सूना राणो। चन्द सूर दोय, बैल रचीलो, गंग जमन दोय रासी। सत संतोष दोय बीज बीजीलो, खेती खड़ी अकाशी। चेतन रावल पहरे बैठे, मृगा खेती चर नहीं जाई। गुरु प्रसादे केवल ज्ञाने, ब्रह्म ज्ञाने, सहज स्नाने, यह घर ऋध सिध पाई ॥108॥
सबद वाणी सबद - 109
ओ३म् देखत भूली को मन माने, सेवै बिलोवै बाज सिनाने। देखत भूली को मन चेवै, भीतर कोरा बाहर भेवै। देखत भूली को मन मानै, हरि पर हरि मिलियो सैताने। देखत भूली को मन चेवै, आक बखाणै थंदे मेवै। भूला लो भल भूला लो, भूला भूल न भूलूं। जिहिं ठूंठडियै पान न होता ते क्यूं चाहत फूलूं ॥109॥
सबद वाणी सबद - 110
ओ३म् मथुरा नगर की राणी होती होती पाटम दे राणी। तीरथ वासी जाती लूटे, अति लूटे खुरसाणी। माणक मोती हीरा लूट्या, जाय बिलूधा दाणी। कवले चूकी बचने हारी, जिहिं अवगुण ढांचे ढोवे पाणी। विष्णु कूं दोष किसो रे प्राणी, आपे खता कमाणी ॥110॥
सबद वाणी सबद - 111
ओ३म् खरड़ ओढ़ीजै, तूम्बा जीमीजै, सुरह दुहीजै। कृत खेत की सींव मलीजै, पीजै ऊंडा नीरूं। सुर नर देवां बंदी खानै, तित उतरिया तीरूं। भोलब भालब, टोलम टालम, ज्यूं जाणो त्यूं आणो। मैं बाचा दई प्रह्लादा सूं, सुचेलो गुरु लाजै। क्रोड़ तेतीसूं बाड़े दीन्हीं, तिनकी जात पिछाणो ॥111॥
सबद वाणी सबद - 112
ओ३म् जाके पंथ का भांजणा, गुरु का नींदणा, स्वामी का दुस्मणा। कुफर ते काफरा, कुमली कुपातूं कुचिला कुधातूं। हड़ हड़ा भड़ हड़ा, दानवे दूतवा, दानवे भूतवा, राकसा बोकसा। जाका जन्म नहीं पर कर्म चण्डालूं। और कूं जिभैं कर आप कूं पौषणा। जिहिं की रुवा ले दीजैसी। दोरै धूप अंधारौं। तानवे तानवा, छानवे छानवा, तोड़वे तोड़वा, कूकवे पुकारवा, जाकी कोई न करवा सारू ॥112॥
सबद वाणी सबद - 113
ओ३म् ईमा मोमन चीमा गोयम महंमद फुरमानी। उरका फुरका नमाज फरीजां, खासा खबर बिनाणी। इलारास्ती ईमा मोमन मारफत मुल्लाणी ॥113॥
सबद वाणी सबद - 114
ओ३म् सुर नर तणो सन्देसो आयो, सांभलियो रे जाटो। चांदणै थकै अंधेरै क्यूं चालो, भूल गया गुरु बाटो। नीर थकै घट थूल क्यूं राखो, सबल बिगोवो खाटो। मागर मणियां क्यूं हाथ बिसाहो, कांय हीरा हाथ उसाटो। सुर नर तणो सन्देसो आयो, सांभलियो रे जाटो ॥114॥
सबद वाणी सबद - 115
ओ३म् म्हे आप गरीबी तन गूदडियो, मेरा कारण किरिया देखो। बिन्दो ब्योहरो ब्योर बिचारो, भूलस नाहीं लेखो। नदिये नीरूं, सागर हीरूं। पवणा रूप फिरै परमेश्वर, बिम्बै बेला निश्चल थाघ अथाघूं। उमग्या समाघूं ते सरवर कित नीरूं। गहर गंभीरूं खिण एक सिन्ध पुरी विश्राम लियों। अबजू मण्डल भई अवाजूं, म्हे सून्य मण्डल का राज ॥115॥
सबद वाणी सबद - 116
ओ३म् आयसां मृगछाला पावोड़ी कांय फिरावो। मतूंत आयसां उगंतो भाण थभाऊं। दोनों पर्वत मेर उजागर, मतूंत अधबिच आन भिड़ाऊं। तीन भवन की राही रूक्मण, मतूंत थलशिर आण बसाऊं। नवसै नदी नवासी नाला, मतूंत थलशिर आण बहाऊं। सीत बहोड़ी लंका तोड़ी, ऐसो कियो संग्रामो। जा बांणै म्हे रावण मारयो, मतूंतो आयसां गढ हथनापुर सै आन दिखाऊं। जो तूं सोने की मृगी कर चलावै, मतूंत घण पाहण बरसाऊं। मृगछाला पावोड़ी कांय फिरावो, मतूंत उगंतो भाण थंभाऊ ॥116॥
सबद वाणी सबद - 117
ओ३म् टूका पाया मगर मचाया, ज्यूं हंडिया का कुता। जोग जुगत की सार न जाणी, मूंड मुंडाया बिगूता। चेला गुरु अपरचै खीणा, मरते मोक्ष न पाया ॥117॥
सबद वाणी सबद - 118
ओ३म् स्वर्गा हूँते शभूं आयो, कहो कौन के काजै। नर निरहारी एक लवाई, प्रगट जोत विराजै। प्रह्लादा सूं वाचा कीवी, आयो बारा काजै। बारा में सूं एक घटे तो, सुचेलो गुरु लाज ॥118॥
सबद वाणी सबद - 119
ओ३म् विष्णु विष्णु तू भणरे प्राणी, पैंके लाख उपाजूं। रतन काया बैकुण्ठे बासो, तेरा जरा मरण भय भाजूं ॥119॥
सबद वाणी सबद - 120
ओ३म् विष्णु विष्णु तू भणरे प्राणी, इस जीवन के हावैं क्षण क्षण आव घटंती जावै, मरण दिनों दिन आवै। पालटीयो घट कांय न चेत्यो, घाती रोल भनावै। गुरु मुख मुरखा चढै न पोहण, मन मुख भार उठावै। ज्यूं ज्यूं लाज दुनी की लाजै, त्यूं त्यूं दाब्यो दाबै। भलिया होय सो भली बुध आवै बुरिया बुरी कमावे ॥120॥
सबद वाणी |