वृहन्नवणम् (नवण) / संध्या मंत्र भावार्थ सहित

वृहन्नवणम् (नवण)/संध्या मंत्र (Vrihannavanam (Navan)/Sandhya Mantra):

भारत की पावन भूमि पर समय-समय पर ऐसे महान संतों का आविर्भाव हुआ, जिन्होंने मानवता के कल्याण हेतु आध्यात्मिक चिंतन और धार्मिक साधना के माध्यम से सर्वधर्म समन्वय और मानवीय मूल्यों की स्थापना की। विश्नोई पंथ के प्रवर्तक श्री गुरु जाम्भोजी (गुरु जम्भेश्वर) भी ऐसे ही एक संत थे, जिन्होंने भारतीय इतिहास के मध्यकालीन दौर में, जब राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक उथल-पुथल, अराजकता, शोषण, अत्याचार और आडंबर का बोलबाला था, तब मानव मात्र के सर्वांगीण उत्थान और कल्याण हेतु एक सरल, सहज और व्यावहारिक मार्ग प्रदान किया।
Bishnoi Sandhya Mantra


गुरु जाम्भोजी महाराज ने अपनी बाल्यावस्था में ही अपनी बुआ तांतृ को जो उपदेश दिया, वह 'वृहन्नवणम्' या 'नवण' या 'संध्या मंत्र' के नाम से जाना जाता है। यह मंत्र आत्मकल्याण और आत्मोत्थान का अद्वितीय स्रोत है, जिसमें मानव के भीतर ईश्वर के दर्शन का मार्ग प्रस्तुत किया गया है। गुरु जाम्भोजी (गुरु जम्भेश्वर) द्वारा बताए गए संध्या मंत्र का नित्य जाप करने से समस्त कष्टों का निवारण होता है और आत्मिक शांति प्राप्त होती है।

वर्तमान में विभिन्न ऑनलाइन वेबसाइट्स और सोशल मीडिया पर संध्या मंत्र से संबंधित कई लेख उपलब्ध हैं, परंतु इनमें अक्सर त्रुटियाँ देखने को मिलती हैं। इसलिए संध्या मंत्र के शुद्ध और सही अर्थ का अनुसरण करना अत्यंत आवश्यक है।

ओ३म् विष्णु-विष्णु तूं भणरे प्राणी। साढ़े भक्ति उधरणो।

दिवला सों दानों। दाशति दानों। मदसु दानों। महमानों।

चेतो चित्त जाणी। शाड़र्ग पाणी।।

नादे वेदे नीझरणों। आदि विष्णु वाराहं। दाढा कर धर उधरणों।

लक्ष्मीनारायण। निश्चल थाणों, थिर रहणों।।

मोहन आप निरंजन स्वामी। भण गोपालों। त्रिभुवन तारों। भणता गुणन्ता पाप क्षयों।

स्वर्ग मोक्ष जेहि तूठा लाभै। अब चल राजों। खापर खानों क्षय करणों।

चीता दीठां मिरग तिरासै, बाघां रोलै गऊ विणासै।

तीर पुले गुणवाण हयों। तप्त बुझै धारा जल बूंठा। यों  

विष्णु भणन्ता पाप क्षयों। ज्यों भूख को पालण अन्न अहारों। 

विष को पालण गरुड़ दवारों। के के पंखेरू सीचांण तिरासै।

यों विष्णु भणता पाप विणासै। विष्णु ही मन विष्णु भणियों।

विष्णु ही मन विष्णु रहियों। तेतीस कोटि बैकुण्ठ पहुन्ता।

साचे सद्गुरु का मंत्र कहीयों।।

वृहन्नवणम् (नवण) / संध्या मंत्र का भावार्थ (Meaning of Vrihannavanam (Navan)/Sandhya Mantra):

ओ३म् विष्णु-विष्णु तूं भणरे प्राणी। साढ़े भक्ति उधरणो।

भावार्थ – श्री गुरु जम्भेश्वरजी द्वारा उच्चारित हर शब्द किसी उद्देश्य से कहा गया है। यह संध्या मंत्र उनकी बुआ तांतू को समर्पित है, जो शरीर से पिता की बहिन हैं, परंतु प्राणी होने के नाते उनका कर्तव्य है कि वे परमेश्वर विष्णु का ध्यान करें। विष्णु का स्मरण करने से साधु और भक्तों का उद्धार हुआ है, और तांतू बुआ भी इस मार्ग पर चलें। 

दिवला सों दानों। दाशति दानों। मदसु दानों। महमानों।

भावार्थ – विष्णु की महिमा अनंत है। उन्होंने समय-समय पर देवताओं, दानवों और अपने भक्तों के अहंकार को नष्ट किया। भक्त भी कभी-कभी अहंकारी हो जाते हैं, लेकिन विष्णु सभी का अभिमान समाप्त कर देते हैं, जैसे उन्होंने मधु और कैटभ जैसे राक्षसों का विनाश किया।

चेतो चित्त जाणी। शाड़र्ग पाणी।। नादे वेदे नीझरणों।

भावार्थ – हे संसार के लोगों, जागो! सावधान होकर विष्णु को मन और बुद्धि से धारण करो, जो नाद और वेद में समाहित हैं। अनहद नाद और वेद के माध्यम से ही विष्णु की प्राप्ति संभव है।

आदि विष्णु वाराहं। दाढा कर धर उधरणों।

भावार्थ – सृष्टि के आरंभ में जब हिरणाक्ष ने पृथ्वी को जल में डुबा दिया था, तब विष्णु ने वराह रूप में अपनी दाढ़ों पर पृथ्वी को उठाकर उसे बचाया। यही विष्णु स्मरणीय और जपनीय हैं।

लक्ष्मीनारायण। निश्चल थाणों, थिर रहणों।।

भावार्थ – संसार में सभी परिवर्तनशील हैं, लेकिन लक्ष्मीपति विष्णु ही स्थिर हैं। उनका स्थान अटल है, क्योंकि वे काल, देश और जाति से परे हैं।

मोहन आप निरंजन स्वामी। भण गोपालों। त्रिभुवन तारों। भणता गुणन्ता पाप क्षयों।

भावार्थ – विष्णु, जिन्हें गोपाल भी कहा जाता है, मोह और पाप से मुक्त हैं। वह तीनों लोकों के उद्धारकर्ता हैं। उनके नाम का स्मरण करने से अनेक जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। क्योंकि वही एकमात्र सामर्थ्यशाली हैं।

स्वर्ग मोक्ष जेहि तूठा लाभै। अब चल राजों। खापर खानों क्षय करणों।

भावार्थ – जब भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं, तो जीव को मोक्ष प्राप्त होता है। यह दिव्य फल वैकुण्ठ में स्थायी स्थान प्रदान करता है। ऐसा प्राणी फिर कभी जन्म-मरण के चक्र में नहीं आता।

चीता दीठां मिरग तिरासै, बाघां रोलै गऊ विणासै।तीर पुले गुणवाण हयों। तप्त बुझै धारा जल बूंठा। यों  विष्णु भणन्ता पाप क्षयों।

भावार्थ – जिस प्रकार चीते को देखकर हिरण भाग जाते हैं, बाघ की गर्जना से गऊ डर जाती है, और तीर अपने लक्ष्य को भेदता है, उसी प्रकार भगवान विष्णु की कृपा से पाप नष्ट हो जाते हैं। जब भगवान की अनुकंपा होती है, तो पाप टिक नहीं पाते।

ज्यों भूख को पालण अन्न अहारों। विष को पालण गरुड़ दवारों। के के पंखेरू सीचांण तिरासै। यों विष्णु भणता पाप विणासै।

भावार्थ – जैसे अन्न से भूख शांत होती है और गरुड़ विषैले जीवों का, उसी प्रकार भगवान विष्णु पापों का नाश करते हैं। जैसे छोटे पक्षी बाज को देखकर भाग जाते हैं, वैसे ही विष्णु के सामने पाप नहीं टिकते।

विष्णु ही मन विष्णु रहियों।

भावार्थ – हे मानव! यदि तुम्हें जीवन में कुछ प्राप्त करना है, तो केवल विष्णु का ही जप, स्मरण और ध्यान करो। अपने जीवन को विष्णु मय बनाओ। उनके नाम से ही सब कुछ मंगलमय होगा। अर्थात यदि संसार में कुछ प्राप्त करना है, तो विष्णु का जप और स्मरण ही जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। जीवन को विष्णुमय बनाकर ही कर्म का फल सुमधुर होगा।

तेतीस कोटि बैकुण्ठ पहुन्ता। साचे सद्गुरु का मंत्र कहीयों।।

भावार्थ – हे तांतू! इस महामंत्र का स्मरण करो। इसके माध्यम से 21 करोड़ प्राणियों का उद्धार हो चुका है। यही सच्चे सद्गुरु का महामंत्र है, और इससे तुम्हारा भी कल्याण होगा।

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