जांभोजी के शिष्य | Jambhoji's disciple

जांभोजी के शिष्य और उनसे प्रभावित व्यक्ति:

जांभोजी बिश्नोई पंथ-संस्थापक, धर्म-नियामक एवं समाज-सुधारक थे, इसलिये उनका शिष्य समाज भी वृहत् तथा विस्तृत था। उन्होंने अपने धर्म प्रचार के हेतु दूर-दूर तक की यात्रायें की थी। उनका आदर्शपूर्ण एवं आध्यात्मिक जीवन और अमृतमय उपदेश इतना प्रभावशाली था कि उससे प्रभावित होकर प्रत्येक वर्ग का व्यक्ति उनका पंथानुयायी व शिष्य बना।

Who were Jamboji's disciples? Explore the vast influence of Saint Jamboji on people from all walks of life including kings & saints. Learn more about his teachings.{alertInfo}

जांभोजी का पंथ केवल साधु संप्रदाय नहीं था, अपितु उनके पंथ का मूलाधार गृहस्थ समाज ही था। अतएव उनके गृहस्थ और विरक्त दोनों प्रकार के शिष्य थे। अनेक परिवारों तथा व्यक्तियों ने उनका शिष्यत्व स्वीकार कर अपने जीवन को उपकृत किया था।

जंभसार में ऐसी बहुतसी कथायें हैं, जिनमें विश्नोई पंथ में दीक्षित होने वाली जातियों, “जाति मुखियों“ और व्यक्तियों का बड़े विस्तार के साथ उल्लेख हुआ है। जिस जाति, समुदाय व व्यक्ति ने उनके उपदिष्ट धर्म को स्वीकार किया वह उनका शिष्य माना गया।

“वील्होजी के जीवन चरित्र“ में लिखा है कि “सद्धर्म संस्थापक भगवान जंभदेवजी के पन्द्रहसौ साधु शिष्य थे। संभवतः यह संख्या उन द्वारा संन्यस्त हुए शिष्यों की हो, जिन्होंने जांभोजी के सान्निध्य में आध्यात्मिक जीवन का उत्कर्ष प्राप्त किया।

जांभोजी के शिष्य
जांभोजी के शिष्य


श्रीरामदासजी ने “हजूरी नामावली“ नाम से उनके शिष्यों एवं शिष्याओं की अंक नाम सूची प्रकाशित की है’ जो इस प्रकार है-

हजूरी महिला शिष्यों की नामावलीः

  • खेतु भादू
  • ओरंगी पंवार
  • तांतु पंवार
  • नायकी पंवार
  • वीरां एचरी
  • अजायबदे गोदारी
  • आल्ही बेनिवाल
  • जेती बेनिवाल
  • सवीरी लोल
  • सीको सुथारी
  • झीमां पुनियांणी
  • गेरा बागड़याणी
  • टतली कासण्याणी
  • स्ीरीयां जाणन
  • लोचां मंडी
  • मरियण पठाणी
  • बीरां गादारी
  • आल्हि जांगू
  • चोखां साहवी
  • लाचण वरी
  • खेमसाह थापण
  • छेउ सेवदी
  • राजी मातवी
  • टाकू नफरी
  • ग्ींदू नफरी
  • मील्ही नफरी
  • नौरंगी भादू
  • चन्द्रमा चारणी
  • रूपां मांझू

ये महिलायें जांभोजी के प्रति अतिशय भक्ति तथा उनके उपदेशों को मानने वाली थी। इनमें से कतिपय “नफरी“ उपाधिवाली महिलायें संभवतः वैराग्य धारिणी संन्यासिनी के रूप में रही हों।

राजस्थानी में नफरी सेविका या शिष्या के अर्थ में प्रयुक्त होता है। मिलाइये “रुस्तम सिद्ध दिल्ली ने चढ़िया नफर लिया दश साथ।{alertInfo}

हजूरी पुरुष शिष्यों की नामावलीः

उपर्युक्त महिला “हजूरी नामावली“ के पश्चात उन पुरुष नामों की सूची है, जिन्हें जांभोजी का शिष्य, अथवा “हजूरी संत“ होने व उनके साथ “साथरी में निवास करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ थाः-

  • डूमो भादू
  • बुढ़ो खिलेरी
  • रावल जाणी
  • रूपो जाणी
  • खेतो जाणी
  • पुरबो जाणी
  • मंगोल (मंगला) जाणी
  • जोखो भादू
  • नाथाजी सांवक
  • तोल्हो जाणी
  • मोतियो मेघवाल
  • लखमण गोदारा
  • वीरम भादू
  • रेड़ाजी सांवक
  • पांडू गोदारा
  • बरसंग खदाह
  • सायर गुरेसर
  • सैंसो कस्वो
  • बीसल पंवार
  • केल्हन खदाह
  • दूदो गोदारा
  • सायर गोदारा
  • राणो गोदारा
  • बरयाम साहू
  • जोखो कस्बो
  • बीसल पंवार
  • दणीयर पंवार
  • बालो खिलेरी
  • अलो जोडकन
  • उदो नैण
  • धन्नो-विछु साह
  • चेलो साह
  • कुलचंद साह
  • रणधीरजी बावल
  • टोहो सुथार
  • पुन्य बाडे़टो
  • रायचंद सुथार
  • लालचंद नाई
  • उधो ढाढणियों
  • कांधल मोहल
  • रायसाल हुडो
  • दुर्जण माल
  • गंगो तरड़
  • अली ब्राह्मण
  • ठाकरा राहड़
  • सधारण नैण
  • गोयंद-रावण झोरड़
  • धूड़ाजी सारण
  • करणों पंवार
  • कान्हों चारण
  • तेजो चारण
  • अल्लू चारण
  • साल्हो गायणो
  • भीयों लोहार
  • आसनों भाट
  • खींयो मांझू
  • सैंसो राठोड़
  • लूंको पोकरणो
  • गंगो बावल

कवि साहबरामजी राहड़ ने जांभोजी के शिष्यों का, उनकी विशिष्ट वेश-भूषा के साथ वर्णन किया हैः-

जंभगुरु के शिष्य अनेक, कहता लहूं न पार।

के भगवा वस्त्र रक्षिता, काले सेती प्यार।

कई पीताम्बर सोभिता, निहंग कहै अपार।

के महाराजा के संगी भया, कुलचंदजी के लार।

इस प्रकार की शिष्य मंडली के अतिरिक्त तपःपूत जांभोजी के सामने बड़े-बड़े पंडित, काजी, मुल्ला आदि भी नत-मस्तक थे। अनेक ऐसे भी उनके शिष्य थे जो प्रारंभ में उनसे द्वेष एवं प्रतिद्वंद्विता रखनेवाले थे, जिनमें नाथपंथी लोहापांगल, सख्याणनाथ, लोहाजड़, पीतलजड़, मृगीनाथ तथा हाली-पाली के नाम विशेष उल्लेखनीय है। इनके अतिरिक्त दिल्ली का बादशाह सिकंदर लोदी, नागौर का शासक मुहम्मद खान, जैसलमेर रावल जैतसी, जोधपुर राव शांतल, उदयपुर राणा सांगा आदि राजेन्द्र जांभोजी के सिद्धि-परिचय एवं ज्ञानोपदेश से सदाचारी तथा उसके आज्ञानुवती बने। रायसल, बरसल राव, दूदा, राव बीका, बीदा, शेखसहू, हरणाखां, मल्लूखांन आदि नामों का उल्लेख भी जांभाणी साहित्य में हुआ है जो जाग्भोजी को अपना गुरु मानते थे।

स्वामी ब्रह्मानंदजी ने जोधपुर के संस्थापक राव जोधाजी, मालदेव, यज्ञेश्वर शर्मा, पं. मूलराज, झालीरानी, बौद्ध संन्यासी चन्द्रपाल आदि के जांभोजी के शिष्य बनने एवं उनसे भेंट करने का उल्लेख किया है।

“जंभसार कथाओं’’ के अनुसार समुद्र पार के राजाओं ने भी जांभोजी का शिष्यत्व ग्रहण किया था। ईरान का बादशाह तो उनसे इतना प्रभावित हुआ कि उसने जांभोजी के चरणो में “एक लाख पट्टे की जागीरी“ का “परवाना“ लिखकर रख दिया।’ जांभोजी के भ्रमणकाल में काबुल के निवासी सुखन खांन, सेफन अली, हसन अली और मुलतान के नबाब उनके बडे ही भक्त एवं शिष्य बन गये थे।

क्षत्रियों की बीस जातियों ने जांभोजी का शिष्यत्व तथा उन द्वारा प्रतिपादित उन्तीस धर्म-नियमों को अंगीकृत किया। “पूरबिये ब्राह्मणों“ में से जांभोजी के इतने शिष्य हुए कि उनके त्यागे हुए यज्ञोपवीत का सवामन वजन हुआ। आज भी उस वंश के लोग अपने को “जम्भैया“ कहलाने मे गौरव का अनुभव करते हैं।“

वैश्य जाति के गर्ग आदि और ब्राह्मण जाति के मुद्‌गल आदि तेरह गोत्रों ने जांभोजी का शिष्यत्व स्वीकार किया। आज भी देश के कई भागों में विशेषकर उत्तर प्रदेश के बिजनौर, बरेली व मुरादाबाद जिलों में इनकी शिष्य परम्परा के लोग हैं, जो “अग्रवाल विश्नोई“ या “बिस्नी बनिये“ (बनिया बिश्नोई) कहलाते हैं।

जांभोजी अपने समय मे ही अवतारी एवं महापुरुष माने जाने लगे थे। रंक से लेकर राजा तक उनकी योग सिद्धि तथा महानता के कायल थे, जिनमें अनेक व्यक्ति ऐसे थे जो जांभोजी के सिद्धि-चमत्कार, रोग-मुक्ति, राज्य-वरदान आदि कारणों से उनके शिष्य और भक्त बन गये थे।

सादर:
जांभोजी की वाणी
सूर्यशंकर पारीक
पृष्ठ संख्याः 59,60
Previous Post Next Post

Advertisement

Advertisement