शब्दवाणी विषयक विशेष बातें

श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान की शब्दवाणी: बिश्नोई धर्म का प्राण

श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान की शब्दवाणी, वैदिक मन्त्रों के समान पुण्यकारक और प्रमाणभूत है। बिश्नोई धर्म के 29 नियमों को यदि शरीर माना जाए, तो शब्दवाणी उसका प्राण है। जिस प्रकार शरीर और प्राण दोनों की रक्षा आवश्यक है, उसी प्रकार बिश्नोई धर्म को पूर्ण और शुद्ध रूप में मानने के लिए 29 नियम और शब्दवाणी, दोनों अत्यंत आवश्यक हैं।

गुरु जम्भेश्वर भगवान की शब्दवाणी
विशेष बातें : 29 नियम तथा शब्दवाणी

शब्दवाणी का पाठ करते समय ध्यान रखने योग्य बातें:

  • हवन करते समय अपना ध्यान हवन की ज्योति पर केंद्रित रखें और ज्योति में ही जम्भेश्वर भगवान का ध्यान करें।
  • यदि शब्दों को बोलना नहीं जानते या याद नहीं हैं, तो मौन बैठकर शब्दवाणी सुनें और दृष्टि ज्योति पर रखें।
  • जहां शब्दवाणी का पाठ हो रहा हो, वहां अन्य विषयों पर बातचीत करना या इधर-उधर देखना पाप है।
  • शब्दवाणी का पाठ एक स्थान पर बैठे हुए सभी व्यक्तियों को एक साथ और मिलकर करना चाहिए।

हवन करते समय:

  • हवन के प्रारंभ में "ओ३म्" का उच्चारण करें और अंत में "ओ३म् स्वाहा" या केवल "स्वाहा" कहकर अग्नि में आहुति दें।
  • शूद्र के घर से अग्नि नहीं लेनी चाहिए और मुख से फूंक नहीं देनी चाहिए।
  • यदि कोई व्यक्ति अग्नि में आहुति देना चाहता है, तो उसे ठीक ढंग से बैठकर आहुति देनी चाहिए।
  • यदि कोई व्यक्ति बुरे संग में पड़कर गलत कार्य कर रहा हो, तो उसे जम्भेश्वर भगवान का स्मरण कर अग्नि में आहुति देनी चाहिए और पाप कर्मों को न करने का संकल्प लेना चाहिए।
  • जिन मंदिरों में प्रातः और सायं दोनों समय हवन होता है, वहां पहले "गुरु चीन्हों..." आदि, "शुक्ल हंस" और कम से कम दस, पन्द्रह या बीस शब्द बोलने चाहिए।
  • शुद्ध घी कम होने पर शुद्ध कार्य के लिए इतने ही शब्द बोलने चाहिए।
  • विशेष उत्सव, मैला और अमावस्या के दिन एक सौ बीस शब्द से हवन करना चाहिए और उस दिन भी "शुक्ल हंस" शब्द को अंत में बोलना चाहिए।

शब्दवाणी का महत्व:

  • शब्दवाणी में कर्म काण्ड, उपासना काण्ड और ज्ञान काण्ड के भेद से तीन प्रकार के शब्द हैं।
  • शब्दवाणी के द्वारा शुभ कर्म करने के उपदेश मिलते हैं।
  • श्री विष्णु भगवान का अनन्य मन से चिन्तन करने से मुक्ति प्राप्त होती है।
  • संसार नाशवान और क्षणभंगुर है, इसलिए इससे मोह, ममता, राग-द्वेष आदि नहीं करना चाहिए।
  • श्री जम्भेश्वर भगवान की वाणी को पूर्णतया पालन करने से अपना और जीवमात्र का कल्याण कर सकते हैं।

सादर,
स्वामी भागीरथदासजी आचार्य
'शब्दवाणी' साहित्य द्वारा सादर

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