समराथल धाम : समराथल धोरा, धोक धोरा

समराथल यह धाम बीकानेर जिले की तहसील नोखा में स्थित हैं। समराथल को सोवन - नगरी, थला , थल एवं संभरि आदि नामों से भी पुकारते हैं । इसका प्रचलित नाम धोक धोरा है। 

समराथल धाम
समराथल

पीपासर मंदिर की स्थिति :

गाँव : मुकाम तालवा

तहसील: नोखा 

जिला : बीकानेर 

स्थिति : समराथल धाम बीकानेर जिले की नोखा तहसील के मुकाम गांव में स्थित है। यह नोखा से 18 किमी, मुक्तिधाम मुकाम मंदिर से 2.5 किमी, पीपासर से 12 किमी उत्तर में और बीकानेर से 65 किमी दूर है।

समराथल पर बिश्नोई सम्प्रदाय की स्थापना :

गुरु जाम्भोजी ने 34 वर्ष की आयु में 1485 में समराथल धोरे पर पवित्र पाहल बनाकर विश्नोई सम्प्रदाय की स्थापना की। उन्होंने 51 वर्ष तक यहाँ सत्संग किया और विष्णु नाम का प्रचार किया। गुरु जी ने देश-विदेशों में भी धर्म का प्रचार किया।

कंकेडी
कंकेडी

गुरु जंभेश्वर भगवान ने विश्नोई संप्रदाय की स्थापना के वक्त में समराथल धोरे पर ही 29 नियमों का उपदेश दिया था।

गुरु जम्भेश्वर और समराथल: 

माता-पिता के स्वर्गवास के बाद गुरु जम्भेश्वर जी पीपासर छोड़कर स्थायी रूप से समराथल में रहने लगे। 1542 में समराथल में भयंकर अकाल पड़ा। इस अकाल से घबराकर लोग अपने घरों को छोड़कर अपने पशुओं को साथ लेकर मालवे की ओर जाने लग गये। गांव के गांव खाली होने प्रारम्भ हो गये। गुरु जी ने  लोगों को मालवे आदि स्थानों पर जाने से रोका और लोगों को अन्न-धन से सहायता प्रदान की।अकाल के दौरान गुरु जी ने लोगों को उपदेश भी दिए और उनकी आचरण में सुधार लाने का प्रयास किया।


समराथल मंदिर
समराथल धोरे पर बना मंदिर

ऐसे  समय में  गुरु जाम्भोजी ने जन कल्याण के लिए बिश्नोई पंथ स्थापित किया। 1485 में कार्तिक वदी अष्टमी को समराथल धोरे पर कलश की स्थापना कर उन्होंने पाहल देकर लोगों को बिश्नोई बनाया।

गुरु जाम्भोजी ने पाहल मंत्र द्वारा कलश में भरे जल का पाहल बनाया और इसी पाहल को देकर लोगों को बिश्नोई पंथ में दीक्षित करना प्रारम्भ किया ।

गुरु जाम्भोजी ने सबसे पहले अपने चाचा पूल्होजी को पाहल देकर बिश्नोई पंथ में दीक्षित किया। पूल्होजी ने स्वर्ग देखने की इच्छा व्यक्त की, तो गुरु जी ने उन्हें सशरीर स्वर्ग के दर्शन करवाए। इस चमत्कार से प्रभावित होकर पूल्होजी बिश्नोई पंथ में दीक्षित हुए। अष्टमी से अमावस्या तक गुरु जी ने लोगों को पाहल देकर बिश्नोई बनाया। बाद में भी लोग बिश्नोई पंथ में सम्मिलित होते रहे हैं ।

वास्तव में गुरु जाम्भोजी ने बिश्नोई पंथ की स्थापना किसी जाति विशेष के लिये नहीं की थी । यह पंथ मानव मात्र के लिये है । इसलिये इसमें बिना किसी भेदभाव के सभी जातियों के लोग सम्मिलित होते रहे हैं । इसी कारण गुरु जाम्भोजी के समय में ही इसका क्षेत्र बहुत बड़ा हो गया था ।

समराथल मंदिर :

मुकाम के मेलों में, लोग सुबह समराथल धोरे पर पहुंचते हैं। वे हवन करते हैं और गुरु जम्भेश्वर द्वारा प्रचारित 29 नियमों का पालन करते हुए पाहल ग्रहण करते हैं। धोरे की सबसे ऊंची चोटी पर, जहां गुरु जी उपदेश देते थे, अब एक सुंदर मंदिर और पूर्व दिशा में उतरने के लिए पक्की सीढ़ियां हैं।

समराथल तालाब
समराथल के पूर्व की ओर नीचे तालाब 

इस मन्दिर के निर्माण में ब्रह्मलीन स्वामी चन्द्रप्रकाश जी व ब्रह्मलीन स्वामी रामप्रकाश जी का विशेष योगदान रहा था । वर्तमान में समराथल पर इन्हीं संतों की परम्परा के दो आश्रम हैं ।

तालाब से मिट्टी निकालते लोग
तालाब से मिट्टी निकालते लोग 
समराथल के पूर्व की ओर नीचे तालाब बना हुआ है , यहां से लोग मिट्टी निकालकर आस - पास ' पालों ' पर डालते हैं और कुछ मिट्टी ऊपर लाकर डालते हैं । कहते है कि यहीं से गुरु जाम्भोजी ने अपने पांचो शिष्यों खीया , भीया , दुर्जन , सेंसो और रणधीर जी को सोवन - नगरी में प्रवेश करवाया था । अब लोगों द्वारा वहां से मिट्टी निकालने के पीछे सम्भवतः एक धारणा यह है कि शायद सोवन नगरी का दरवाजा मिल जाय और वे उसमें प्रवेश कर जायें ।
समराथल और मुकाम के बीच में श्रद्धालुओं की भीड़
समराथल और मुकाम के बीच में बनी हुई पक्की सड़क श्रद्धालुओं की भीड़ 

समराथल और मुकाम के बीच में बनी हुई पक्की सड़क पर समाज की एक बहुत बड़ी गौशाला है , जो समाज की गो - सेवा की भावना की प्रतीक है । 

बिश्नोई के 29 नियम क्या हैं?  What are the 29 rules of Bishnoi?

सम्वत् 1542 की कार्तिक वदि अमावस्या सोमवार को जांभोजी महाराज ने  29 नियमों की दीक्षा एवं पाहल देकर विश्नोई पंथ की स्थापना की थी। 

प्रथम बिश्नोई कौन थे?

जम्भेश्वरजी ने सबसे पहले अपने चाचा पूल्होजी को पाहल देकर पंथ में दीक्षित किया ।

आप बिश्नोई कैसे बनते हैं?

सर्वप्रथम सम्वत् 1542 की कार्तिक बदी अमावस्या वार सोमवार को जांभोजी महाराज ने  29 नियमों की दीक्षा देकर बिश्नोई समाज की स्थापना की थी, उसके बाद बिश्नोई के घर जन्म लेने वाला प्रत्येक वंशज बिश्नोई हैं। बिश्नोई होने के 29 नियमों का पालन करना आवश्यक हैं।

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