पीपासर राजस्थान के नागौर जिले में स्थित एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यह स्थान बिश्नोई पंथ के संस्थापक गुरु जम्भेश्वर का जन्मस्थान और अवतार स्थल है। यहाँ गुरु जम्भेश्वर मंदिर और पैनोरमा स्थित हैं, जो श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र हैं।
गुरु जम्भेश्वर का जन्म पीपासर ग्राम में, ग्राम पति ठाकुर लोहटजी के घर वि.स. 1508 (1451 ई.) में हुआ था। इसी ग्राम पीपासर में गुरु श्री जम्भेश्वर भगवान ने 34 वर्ष 2 माह तक निवास किया था।
पीपासर मंदिर जाम्भोजी का अवतार स्थल |
पीपासर मंदिर की स्थिति :
गाँव : पीपासरजिला : नागोर
राज्य : राजस्थान
दुरी : मुकाम से लगभग 12 कि.मी. दक्षिण में और नागौर से लगभग 45 कि.मी. उत्तर में है ।
पीपासर मन्दिर :
समराथल पर रहना प्रारम्भ करने से पूर्व तक गुरु जाम्भोजी पीपासर में रहते थे । पीपासर में साथरी के अतिरिक्त गुरु जम्भेश्वर भगवान का मन्दिर भी है । गुरूजी ने पीपासर गाँव की सरहद में गायें चराई थी। गाँव में जिस कुएँ के पास गुरु जाम्भोजी ने सब्दवाणी का प्रथम सब्द कहा था, वह गाँव में है और अब बंद पड़ा है । इसी कुएं पर राव दूदा जी ने गुरु जाम्भोजी को चमत्कारिक ढंग से पशुओं को पानी पिलाते हुए देखा था ।
वर्तमान साथरी गुरु जाम्भोजी के घर की सीमा में है, जिसकी देखभाल सन्तजन करते हैं। यहीं पर एक छोटी सी गुमटी है। कहते है कि यहीं पर गुरु जाम्भोजी का जन्म हुआ था। साथरी में रखी हुई खड़ाऊ की जोड़ी और अन्य सामान गुरु जाम्भोजी का बताया जाता है ।
राव दूदा द्वारा घोड़ा बांधने वाला खेजड़ा आज भी कुएं और साथरी के बीच मौजूद है। यहीं पर गुरु जाम्भोजी ने अपने पशुचारण - काल में राव दूदाजी को 'परचा' दिया था। राव दूदाजी की प्रार्थना पर गुरु जाम्भोजी ने उन्हें मेड़ते प्राप्ति का आशीर्वाद और एक काठ - मूठ की तलवार दी थी ।
पीपासर मेला :
यहां जन्माष्टमी को मेला लगता है। मुकाम में लगने वाले मेलों के समय भी लोग इस पवित्र धाम के दर्शन करने पहुंचते हैं ।
पेनोरमा - गुरु जम्भेश्वर भगवान के जीवनवृत्त :
- राजस्थान सरकार द्वारा गुरु जम्भेश्वर के जीवनवृत्त को दर्शाने के लिए पैनोरमा बनाया गया है।
- पैनोरमा में गुरु जी के जन्म से लेकर उनके निर्वाण तक की घटनाओं (आध्यात्मिक शिक्षा तथा सामाजिक सुधार में किए कार्यों) को दर्शाया गया है।
- पैनोरमा में गुरु जी के 29 नियमों को रंगीन और कलात्मक डिजाइन के साथ दर्शाया गया है।
- पैनोरमा में खेजड़ी का बलिदान, शेख सद्दो से द्वारा गौवध ना करने की प्रतिज्ञा, पशु पक्षियों का प्रेम और अकाल के उपायों (1542 में समराथल में अकाल पीड़ितों के समय) की जानकारी भी दी गई है।
आर्यभट्ट उपग्रह की डिजाइन गुरु जी के 29 नियमों को दर्शाती है, जो वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित हैं। गुरु जी एक प्रगतिशील विचारक थे जो प्रकृति और पर्यावरण के महत्व को समझते थे। गुरु जी के विचार आज भी प्रासंगिक हैं और हमें बेहतर जीवन जीने में मदद कर सकते हैं।