श्री गुरु जम्भेश्वर मंदिर, जांगलू: एक ऐतिहासिक तीर्थस्थल
श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान ने अपने शिष्यों के साथ जांगलू में विश्राम किया था यहाँ गुरु जम्भेश्वर भगवान का मन्दिर है, जिसमें गुरु जाम्भोजी का चोला एवं चीपी रखी हुई है। कहते हैं कि मेहोजी मुकाम से चोला, चीपी एवं टोपी लेकर जांगलू आये थे। मुकाम के थापनों के निवेदन पर टोपी तो मेहोजी ने वापिस दे दी थी और शेष दोनों वस्तुएं जांगलू मन्दिर में आज भी सुरक्षित है।
जांगलू धाम |
जांगलू मंदिर की स्थिति :
गाँव : जांगलू
तहसील : नोखा
जिला : बीकानेर राजस्थान
निकटतम स्थान : देशनोक
जांगलू गाँव देशनोक से लगभग 12 कि.मी. दक्षिण - पश्चिम में है। यहाँ गुरु जाम्भोजी की चोला एवं चीपी रखी हुई है। कहते हैं कि यहां रखी हुई चीपी वही है, जो सैंसा के घर खंडित हो गई थी। मूल चीपी सुरक्षित रहे, इसलिये उसे काम में नहीं लेते । उसी आकार की एक दूसरी चीपी है , जिसे श्रद्धालु अपनी मनोकामना के लिये अमावस्या को घी से भरते हैं । कहते हैं कि मेहोजी मुकाम से चोला , चीपी एवं टोपी लेकर जांगलू आये थे । मुकाम के थापनों के निवेदन पर टोपी तो मेहोजी ने वापिस दे दी थी और शेष दोनों वस्तुएं जांगलू मन्दिर में आज भी सुरक्षित है। मन्दिर के पास ही मेहोजी की समाधि है ।
जांगलू के वर्तमान मन्दिर की नींव सन्त मनरूप जी ने सम्वत् 1883 में चैत सुदि नवमी , सोमवार को रखी थी।
जांगलू मेला :
जांगलू मन्दिर में वर्ष में दो मुख्य मेले प्रथम चेत की अमावस्या तथा दूसरा भादवा की अमावस्या को लगते हैं ।
जांगलू साथरी :
जांगलू गांव से पांच कि.मी. दूर साथरी है, जहां पर श्री गुरु जम्भेश्वरजी ने अपने साथियों सहित वि.सं. 1570 में जैसलमेर के जेतसंमद बांध का उदघाटन (यज्ञ) करने हेतू जाते समय विश्राम किया था । साथरी से उत्तर की ओर एक चौकी बनी हुई है, जहां गुरु जाम्भोजी ने हवन किया था ।
चौकी के पास ही एक कंकेडी का वृक्ष है। कहते हैं कि इसे गुरु जाम्भोजी ने लगाया था ।
वरींगआली नाडी :
यहां पर एक तालाब है, जिसे बरसिंह बणियाल ने खुदवाया था। इसी कारण इसे ' वरींगआली नाडी ' कहते हैं । लोग अपनी मनोकामना पूर्ण करने हेतु इसमें स्नान करते हैं और मिट्टी निकालते हैं ।
जांगलू के ठाकुर धनराज जी भाटी ने गुरु महाराज के कहने पर यहाँ 600 बीघा ओण् (परतभूमि) छोडी थी। यह जांगलू धाम बिश्नोई समाज के अष्ट धामों में से एक धाम है।