श्री गुरु जम्भेश्वर शब्दवाणी : शब्द 108

ओ३म् हालीलो भल पालीलो सिध पालीलो । खेड़त सूना राणो ।।

 चन्द सूर दोय बैल रचीलो । गंग जमन दोय रासी ।। सत संतोष दोय बीज बीजीलो । खेती खड़ी अकासी ।। चेतन रावल पहरै बैठे । मृगा खेती चर नहीं जाई ।। गुरु प्रसादे केवल ज्ञाने । ब्रह्मज्ञाने सहज स्नाने । यह घर ऋध सिध पाई ।।१०८।। 

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