ओ३म् हालीलो भल पालीलो सिध पालीलो । खेड़त सूना राणो ।।
चन्द सूर दोय बैल रचीलो । गंग जमन दोय रासी ।। सत संतोष दोय बीज बीजीलो । खेती खड़ी अकासी ।। चेतन रावल पहरै बैठे । मृगा खेती चर नहीं जाई ।। गुरु प्रसादे केवल ज्ञाने । ब्रह्मज्ञाने सहज स्नाने । यह घर ऋध सिध पाई ।।१०८।।