एक बिजनोर से बिश्नोई श्री जम्भेश्वर जी के पास आया , और बोला की हे देव ! आपके 27 नियमों का पालन तो मैं आसानी से करता हूँ . परन्तु शील व् स्नान के लिए मैं आपको यह सोना देकर छुटी चाहता हूँ . तब जम्भेश्वर ने यह शब्द सुनाया -
कंचन दानु कुछ न मानू ! कापड दानु कुछ न मानू !!
चोपड दानु कुछ न मानू ! पाट पटम्बर दानु कुछ न मानू !!
पंच लाख तुरंगम दानु कुछ न मानू ! हस्ती दानु कुछ न मानू !!
तिरिया दानु कुछ न मानू ! मानू एक सुचील सिनानु!!
अर्थात
मैं स्वर्ण दान को कुछ नहीं मानता और वस्त्र दान को भी कुछ नहीं मानता !
घी तेल आदि दान को कुछ नहीं मानता, और बड़े कीमती रेशमी वस्त्रों को भी कुछ नहीं मानता!
पांच लाख घोडो के दान को कुछ नहीं मानता और न ही हाथियों के दान को मानता हूँ !
कन्या दान आदि कुछ नहीं मानता , मैं तो केवल शील व् स्नान को ही मानता हूँ !