श्री गुरु जम्भेश्वर शब्दवाणी : शब्द 104

क बिजनोर से बिश्नोई श्री जम्भेश्वर जी के पास आया , और बोला की हे देव ! आपके 27 नियमों का पालन तो मैं आसानी से करता हूँ . परन्तु शील व्  स्नान के लिए मैं आपको यह सोना  देकर छुटी  चाहता हूँ . तब जम्भेश्वर ने यह शब्द सुनाया -


कंचन दानु कुछ न मानू  ! कापड दानु कुछ न मानू !!

चोपड दानु कुछ न मानू  ! पाट   पटम्बर दानु कुछ न मानू  !!

पंच लाख तुरंगम दानु कुछ न मानू  ! हस्ती दानु कुछ न मानू  !!

तिरिया दानु कुछ न मानू  ! मानू  एक सुचील सिनानु!!

अर्थात

मैं स्वर्ण दान को कुछ नहीं मानता और वस्त्र दान को भी कुछ नहीं मानता !
घी तेल आदि दान को कुछ नहीं मानता, और बड़े कीमती रेशमी वस्त्रों को भी कुछ नहीं मानता!
पांच लाख घोडो के दान को कुछ नहीं मानता और न ही हाथियों के दान को मानता हूँ !
कन्या दान आदि कुछ नहीं मानता , मैं तो केवल शील व्  स्नान को ही मानता हूँ ! 

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