श्री गुरु जम्भेश्वर शब्दवाणी : शब्द 103

क मूला  नाम का ब्राहामन जम्भेश्वर के पास आया करता था ।  एक दिन जब वह अपने घर गया तो अपनी स्त्री से भांजे को झगड़ते देखा तो बड़ा दुखी हुआ , और जम्भेश्वर जी से यह घटना जाकर कही । तब जम्भेश्वर जी ने यह शब्द सुनाया --

देखा अदेख्या सुण्या असुन्या  ।  क्षिमा रूप ताप कीजै  ।  । 

थोड़े मनही थोडेरो दीजे  ।  होते ना न कीजै  ।  । 

कृष्ण माया तिन्हू लोका साक्षी  । अमृत फूल फलिजैं  ।  । 

जोय-जोय नावं विष्णु के दीजै  । अनंत गुणा लिख लीजे  ।  ।  


-अर्था -

बुरा देखकर अनदेखा करना चाहिए , बुरी बात सुन कर अनदेखी करनी चाहिए , तथा क्षमा रुपी ताप करना चाहिए  ।

पने पास कोई भी  चीज थोड़ी सी हो तो (किसी के मांगने पर ) उसमे से थोड़ी देनी चाहिए कोई वास्तु के होते हुए मना नहीं करना चाहिए  ।

तीनों लोक कृष्णमय हैं , वह सर्वत्र साक्षी रूप मैं वर्तमान हैं  ।  इसलिए सुक्रत करके फलना-फूलना चाहिए  ।

सुपात्र देख -देख  कर विष्णु को अर्पण करके उसको  दान दो , वह दान अन्नंत गुना होकर मिलेगा  ।

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