एक मूला नाम का ब्राहामन जम्भेश्वर के पास आया करता था । एक दिन जब वह अपने घर गया तो अपनी स्त्री से भांजे को झगड़ते देखा तो बड़ा दुखी हुआ , और जम्भेश्वर जी से यह घटना जाकर कही । तब जम्भेश्वर जी ने यह शब्द सुनाया --
देखा अदेख्या सुण्या असुन्या । क्षिमा रूप ताप कीजै । ।
थोड़े मनही थोडेरो दीजे । होते ना न कीजै । ।
कृष्ण माया तिन्हू लोका साक्षी । अमृत फूल फलिजैं । ।
जोय-जोय नावं विष्णु के दीजै । अनंत गुणा लिख लीजे । ।
-अर्थात -
अपने पास कोई भी चीज थोड़ी सी हो तो (किसी के मांगने पर ) उसमे से थोड़ी देनी चाहिए कोई वास्तु के होते हुए मना नहीं करना चाहिए ।
तीनों लोक कृष्णमय हैं , वह सर्वत्र साक्षी रूप मैं वर्तमान हैं । इसलिए सुक्रत करके फलना-फूलना चाहिए ।
सुपात्र देख -देख कर विष्णु को अर्पण करके उसको दान दो , वह दान अन्नंत गुना होकर मिलेगा ।